वीवीपैट ईवीएम मशीनों से चुनाव पारदर्शिता संभव


भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां पर जनता को वोट डालकर अपना नेता चुनने का अधिकार प्राप्त है। किसी भी चुनाव के बाद जनता को पूरा विश्वास होता है कि जीत के बाद जो प्रतिनिधि सामने आया है वह स्वयं उनका चुना हुआ है।लेकिन राजनीतिक पार्टियां अपने राजनीतिक फायदे के लिए जनता के इस विश्वास से खिलवाड़ करने से बाज नहीं आ रही। जहां दो ही दिन में चुनाव आयोग ईवीएम पर बढ़े संदेह को दूर करने के लिए बैठक बुला रही थी। वहीं आप पार्टी के अध्यक्ष और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने  ईवीएम में 9 सेकंड के अंदर गड़बड़ी करी जा सकती है यह बात करके ईवीएम की विश्वनीयता पर फिर संदेह खड़े कर दिए। यह बात समझ से परे है कि उन्होंने यह इंतजार क्यों नहीं किया कि चुनाव आयोग की पहली बैठक पूरी हो जाए। 

जब अरविंद केजरीवाल में विधानसभा का सत्र बुलाया तो उम्मीद करी जा रही थी कि कपिल मिश्रा द्वारा लगाए गए रिश्वत के इल्जामों का जवाब मिलेगा। लेकिन लोगों का इंतजार तक फीका पड़ गया जब अरविंद केजरीवाल ने उन इल्जामों का जवाब देने की जगह फिर ईवीएम पर इल्जाम लगाया। एक तरह से यह भी माना जा सकता है कि कपिल मिश्रा के लगाए गए रिश्वत के इल्जाम के जवाब देने से बचने के लिए अरविंद केजरीवाल ने नया पैंतरा खेला। सबको असल मुद्दों से भटकाने के लिए इस बात का सहारा लिया।
 
हालांकि चुनाव आयोग ने लोगों में ईवीएम को लेकर बढ़ती शंकाओं को दूर करने के लिए ईवीएम में (वीवीपैट) वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल मशीन लगाने का निर्णय लिया है। वीवीपैट मशीन के जरिए मतदान करते ही मतदाता के सामने मशीन पर उस चुनाव निशान का फोटो आ जाता है जिसे उसने वोट दिया है। 7 सेकंड बाद वीवीपैट से उसकी पर्ची एक बक्से में गिर जाती है। इस तरह से वोटर जान पाएगा कि उसका वोट किसे मिला है। इसका फायदा यह होगा कि यदि बाद में कोई चुनाव निर्णयों को लेकर संदेह जताता है तो पर्चियों की  गिनती कर सारे विवादों को खत्म किया जा सकता है।

भविष्य में वीवीपैट मशीनों के जरिए चुनाव में पारदर्शिता लाना संभव है। सरकार ने 2019 के लोकसभा चुनाव में वीवीपैट वाली ईवीएम मशीन का इस्तेमाल करने की कोशिश में कदम बढ़ा दिए हैं। सरकार ने वीवीपैट लगाने के लिए 3173 करोड रुपए मंजूर कर दिए हैं। इस राशि के जरिए 16 लाख 15 हजार वीवीपैट मशीनें खरीदी जाएंगी। हालांकि ऐसी 16 लाख मशीनें बनने में लगभग 30 माह लगते हैं। लेकिन चुनाव आयोग के आग्रह पर कंपनी 18 माह के भीतर मशीनें उपलब्ध कराने को राजी हुई है।  इससे उम्मीद है कि इस साल के आखिरी में होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में वोटरों को वीवीपैट वाली ईवीएम मशीनों के जरिए वोट डालने को मिलेगा।

ईवीएम को लेकर बढ़ते विवाद के चलते कहीं ना कहीं चुनाव व्यवस्था पर जनता अपना विश्वास खो रही थी।
चुनाव आयोग के उठाए गए इस ठोस कदम से आने वाले चुनावों में जनता का विश्वास कायम हो पाएगा।क्योंकि ऐसा अविश्वास देश की लोकतंत्र व्यवस्था पर भी एक प्रश्न चिन्ह छोड़ जाता है। इन मशीनों के जरिये आने वाले चुनावों में होने वाले किसी भी विवाद को रोका जा सकता है। इस बार के चुनाव के बाद जनता के अंदर जो भी शंकाएं उत्पन्न हुई थी, इन मशीनों के जरिए आने वाले चुनावों में उन शंकाओं पर जीत हासिल की जा सकेगी।

ईवीएम में वीवीपैट मशीन लगाने की बात 2010 में उठी थी। सुब्रमण्यम स्वामी ने न्यायालय में इसके लिए याचिका दी थी। सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने ईवीएम में वीवीपैट लगाने का निर्देश दे दिया था स्वामी अब भाजपा के सांसद है। चुनाव आयोग ने निर्देश आते ही 2013 में 20300 मशीनें खरीद ली थी। उसने 2015 में 67,000 मशीनों का आॅर्डर दिया था, जिसमें से 33500 मशीनें चुनाव आयोग को उपलब्ध हो चुकी है।

हालांकि इस वर्ष इस मामले पर गंभीरता से विचार किया गया क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव में कुछ राजनीतिक दलों ने ईवीएम में गड़बड़ी के आरोप बार-बार लगाए। दरअसल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)की भारी बहुमत से जीत के बाद अन्य पार्टी बौखला गई। अपनी हार का जिम्मा ईवीएम पर मढ़ने लगी । पार्टियों का कहना था कि ईवीएम में गड़बड़ी है इसलिए उनकी हार हुई। अपनी कमजोरियों, गलतियों को न समझ कर वह अपनी हार के लिए ईवीएम में गड़बड़ी को जिम्मेदार ठहराने लगे।

ईवीएम में गड़बड़ी की बात सबसे पहले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती ने कही थी। उनका कहना था कि भाजपा सरकार ने ईवीएम में गड़बड़ी कर बसपा को जाने वाले वोट भी भाजपा की ओर डलवा दिए। यह बात पहले नहीं उठी थी जब 2007 में बसपा सरकार बहुमत पाकर चुनाव जीती थी। वहीं अपनी 'बुआ' का समर्थन करते हुए उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी कहा कि अगर मायावती जी कुछ कह रही हैं तो उनकी बात पर गौर किया जाना चाहिए। चुनाव  आयोग को ईवीएम की जांच करानी चाहिए। इनको भी 2012 में भारी बहुमत प्राप्त हुआ था तब इस गड़बड़ी का अंदाजा ना हुआ। यहां तक की अखिलेश यादव ने यह भी कहा है कि अगर खराब मशीनों को ठीक किया जा सकता है,तो ठीक मशीनों को खराब भी किया जा सकता है। उन के इस बयान से चुनाव आयोग की कार्यशैली पर भी सवालिया निशान लग गया।

असल में सभी पार्टिया ईवीएम पर संदेह जताकर देश की चुनाव व्यवस्था की विश्वसनीयता को कम कर रही है। वहीं ईवीएम पर इतने सवाल उठने के बाद चुनाव आयोग से ईवीएम की जांच कराने की मांग की गई थी। चुनाव परिणामों के बाद विपक्ष ने ईवीएम के खिलाफ एक मुहिम छेड़ दी। विपक्ष की जांच की मांग के जवाब में चुनाव आयोग ने कहा कि जिन्हें ईवीएम पर संदेह हो वह पहले खुद ईवीएम में गड़बड़ी करके दिखाएं। हालांकि चुनाव आयोग के इस ऐलान पर किसी की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। शायद अपनी इस चुप्पी से वह यह साबित कर रहे थे कि ईवीएम पर संदेह जताना सिर्फ उनकी हार का नतीजा था। क्योंकि वह भी यह जानते थे कि ईवीएम में गड़बड़ी करना इतना आसान नहीं है। 

इतने पर भी ईवीएम पर आरोप का सिलसिला थमा नहीं। दिल्ली में एमसीडी के चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) ने भी अपनी हार के बाद ईवीएम को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया था। वह भी 2015 के चुनाव को भूल गए जब 70 में  66 सीट पाकर बहुमत से जीत हासिल की थी। हालांकि इस बात को लेकर पूरी पार्टी में बहुत हद तक मतभेद भी रहा। पार्टी के कुछ सदस्य हार को स्वीकारते हुए मान रहे थे कि इस बार वह जनता के साथ संपर्क कायम करने में असफल रहे हैं, जिसकी वजह से जनता ने उनका साथ नहीं दिया। यह सभी पार्टियां यह भूल जाती हैं कि ईवीएम पर सवाल उठा कर वह देश के लोकतंत्र पर भी सवाल उठा रहे हैं जिससे कि हमारे देश की छवि अन्य देशों में निश्चित ही बिगड़ सकती है।

विपक्ष ने ईवीएम को लेकर कई अभियान चलाए। जनता में उसका विश्वास कम करने की कोशिश की। न्यायालय में ईवीएम की जांच कराने की याचिका भी दायर की। लेकिन उनकी सारी कोशिशें बेअसर साबित हुई। न्यायालय ने उनकी याचिका को रद्द करते हुए ईवीएम में गड़बड़ी को नकार दिया।

देश में चुनाव व्यवस्था पर जनता का विश्वास बनाए रखने की जिम्मेदारी राजनीतिक पार्टियों की होती है। लेकिन यह राजनीतिक पार्टियां अपने फायदे के लिए उनके भी विश्वास के साथ खिलवाड़ करने से बाज नहीं आती हैं। वह यह भी नहीं देखती हैं कि उनकी कोई भी प्रतिक्रिया किस कदर जनता को प्रभावित कर सकती है। क्योंकि जनता जिन्हें अपना प्रतिनिधि चुनती है अगर वही ऐसा प्रतिनिधित्व करेंगे तो जनता किस राह पर चलेगी इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है।

चुनाव व्यवस्था  पर उठे संदेह को दूर करने के लिए वीवीपैट वाली ईवीएम मशीनों का इस्तेमाल निश्चित ही भविष्य में लाभकारी साबित होगा। जनता  बिना किसी दुविधा के  वोट डालने में समर्थ हेागी। इस तरह चुनाव आयोग जनता के समक्ष चुनाव की पारदर्शिता को दर्शाने में,साबित करने में सफल हो सकेगा। 

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