रंग रंगीली लाठियों की होली
‘लठ्ठमार होली में कर दियो
लाल, ऐसं है बृज के बरसाने
का गुलाल‘
नए रंग बिखेरती, बेड़ियां तोड़तीं, शर्म छोड़कर
लाठियां लिए बाहर निकलती महिलाएं, ऐसा
मंजर देखना हो तो, बरसाने की होली में जाएं.......
एक महिला होने के
नाते उन्हें समाज में शायद परेशानियों का सामना करना पड़ता हो, पर उसके लिए उन्हें दब कर नहीं बल्कि निडर होकर
नए बदलाव की ओर अग्रसर होना चाहिए। हालांकि महिलाओं के सशक्त होने की बात कोई नई
नही है। हमारे देश में पहले भी सशक्त महिलाओं के उदाहरण मौजूद है। पर अगर महिला के
सशक्त होने के अवसर की बात हो तो बरसाने की लठ्ठमार होली का नाम जरूर आता है। शायद सबने इसका नाम अवश्य
ही सुना होगा, लेकिन इसके बारे
में पूर्ण रूप से जानकारी न रखते हों।
क्या होती है लठ्ठमार
होली ?
लठ्ठमार होली ब्रजमंडल के बरसाना में मनाया जाने वाला बहुत ही अद्भुत् त्यौहार है। यह
कृष्ण के जन्म स्थान मथुरा से लगभग 44 किमी. की दूरी पर है। जब भी होली का जिक्र आता है तो बरसाने की होली का नाम
सबसे पहले लिया जाता है, क्योंकि होली की
मस्ती की शुरूआत बृज की पावन धरती से हुई थी। यहां की होली को राधा-कृष्ण के प्रेम
से जोड़ा जाता है तभी कहते हैं कि होली प्यार के रंग बिखेरने का त्यौहार है। बृज की
होली में मुख्यतः नंदगांव के पुरूष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंदगांव और राधा बरसाने की थी।
जब नंदगांव के पुरूष रंग कि पिचकारी लेकर बरसाने जाते हैं तो बरसाने की महिलाएं
उनपर लाठियां बरसाती है। नंदगांव के पुरूषों को उन लाठियों से बचते बचाते उनको
रंगना होता है। यहां के लोगों का विश्वास है कि इसमें किसी को चोंट नहीं लगती है,
और लग भी जाती है तो वह मिट्टी लगाकर फिर से
होली के रंगीन मौसम में खो जाते हैं। इस दौरान भांग और ठंडाई का इंतजाम भी होता
है। कीर्तन मण्डलियाँ ‘कान्हा बरसाने
में आई जइयो बुलाए गई राधा प्यारी‘, ‘फाग खेलन आए हैं नटवर नंद किशोर‘ और ‘उड़त गुलाल लाल भए बदरा‘ जैसे गीत गाती
हैं।
‘सब जग होरी, जा ब्रज होरा‘
यह तो सबने सुना है कि ब्रज की होली पूरे देश में सबसे अनूठी होती
है। यहां पर खेली जाने वाली इतनी मशहूर है कि इस लठ्ठ मार होली को देखने के लिये
दूर-दूर से देश और विदेशों से लोग आते हैं। इसीलिए यह कहा जाता है , सब जग होरी, जा ब्रज होरा...... ।
खास परंपरा
यहां की खास
परंपरा है कि लठ्ठमार होली के एक दिन पहले यहां पर लड्डूमार होली भी होती
है। जिसमें लोग एक दूसरे पर लड्डू फेंक कर होली मनाते और नांचते गाते हैं। जिससे बरसाना
की होली की विचित्रता देखते ही बनती है। कहा जाता है कि यहीं पर भगवान श्री कृष्ण
ने गोपियों को घेरा था।
यहां पर भादों
सुदी अष्टमी राधा के जन्म दिवस पर विशाल मेला लगता है। इसी प्रकार फाल्गुन शुक्ला
अष्टमी , नवमी एवं दशमी को होली की
लीला होती है।
जब लोक लाज के
टूटे बंधन
जैसा कि सब जानते
है कि भारत एक पुरुषप्रधान समाज है जहाँ पुरुष का हर क्षेत्र में दखल है और
महिलाएँ सिर्फ घर-परिवार की जिम्मेदारी उठाती है साथ ही उनपर कई पाबंदियाँ भी होती
है। अक्सर हमने लोगों को कहते हुए सुना है कि ‘लोक लाज, शर्म महिलाओं का
गहना होते हैं, असल में तो यह
गहने बेड़ियों के पर्यायवाची हैं। इन गहनों कि वजह से महिलाओं को मानसिक तौर
पर घर के अंदर रहने को मजबूर किया जाता
है। परंतु हम कह सकते हैं लठ्ठमार होली ऐसा त्योहार है जो यह दर्शाता है कि महिलाएं भी पुरूषों के साथ बराबरी
से खड़ी हो सकती हैं और वह किसी से कम नहीं हैं।