हालही में हुए पुखरांया रेल हादसे से लोग अभी उभर नहीं पाए थे कि रुरा में फिर सियालदह - अजमेर एक्सप्रेस हादसा ग्रस्त हो गयी। जिस ने एक बार फिर लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर उनके लिए रेल का सफर कितना सुरक्षित है। एक बार फिर रेलवे प्रशासन कठघरे में खड़ा हो गया है। रेलवे की लापरवाहियों के चलते बार बार रेल हादसे हो रहे हैं जिसमें उनकी कई लापरवाहियाँ उजागर हुई है। इन लापरवाहियों पर कुछ समय तक बात करके उन्हें वहीं छोड़ दिया जाता है जब तक की दूसरा हादसा न हो जाए।
इस हादसे का कारण पटरी का चटकी होना माना जा रहा है। तो इससे यह तो तय है कि रेलवे की लापरवाही कहीं कम नहीं हो रही है। बल्कि उनकी लापरवाही से कई बेगुनाहों को अपनी जिंदगियां गंवानी पड़ रही है। इस हादसे के बाद सवाल यह भी उठता है की क्या पटरियों की नियमित जांच करायी जा रही थी की नहीं और अगर हो रही थी तो कब और किसने की ये कुछ ऐसे सवाल है जिनके उत्तर रेलवे को जांच में देने होंगे। साथ ही उस जांच का प्रारूप जनता के समक्ष उन्हें पेश करना होगा। जिससे की यह बात सामने आ सके की कहीं वह जांचे केवल कागजों पर ही तो नहीं रह गई हैं।
रेलवे फिर यह दोहराएगा की घटना की पुरी जांच होगी लापरवाहियां सामने आने पर दोषियों को दंड दिया जाएगा जैसा की हर हादसे केे बाद होता है। पर क्या ऐसा कुछ नहीं किया जा सकता की इन हादसों को होने से पहले ही रोका जा सके। इसके लिए रेलवे प्रशासन का हमेशा सक्रिय रहना आवश्यक है। उनको निरंतर रुप से पटरियों व पुलों की जांच नियमित रूप से कराते रहना चाहिए। यदि ऐसे चंद प्रयास करें तो ऐसे हादसे रोके जा सकते हैं और बेगुनाहों को अपनी जिंदगियां न गंवानी पड़े। अब फिर प्रशासन हुए हादसे पर दुख जताएगा, मृत लोगों के लिए मुआवजा देने की बात कहेगा। पर क्या वह लोगों को उनकी खोई हुई जिंदगियां लौटा पाएगा। असल में तो वह जो पैसा बाद में मुआवजे के तौर पर देते हैं उसकी जनता को जरूरत नहीं है जनता को सुरक्षित सफर की जरूरत है । प्रशासन को पहले ही मुआयना कर, सुरक्षित रेलवे के परिचालन के इंतजाम करने चाहिए।
हालांकि अगर प्रशासन पहले ही नियमित रूप से पटरियों व पुलों का मुआयना कराए तो उन्हें मुआवजे की रकम नहीं देनी पड़ेगी। और वह देश में एक सुरक्षित रेलवे का उदाहरण भी पेश कर पाएंगे। क्योंकि जनता को मुआवजे की नहीं नियमित मुआयने की जरूरत है।