सोचा था जैसा वैसा कुछ न हुआ

सोचा था जैसा वैसा कुछ न हुआ
जब जीवनसाथी ही अपना न हुआ
जानें क्यों दिखाए सपने थे उसने
जब खुद न समझे घर कैसे हैं बसते

बड़े प्यार से हाथ मेरा था उसने थामा
कहा अब मुझे ही साथ तेरा है निभाना
फिर क्यों न टिका अपनी बातों पर वो
हे ईश्रर ऐसी सजा किसी को भी न दो

जब यही लिखा था किस्मत में मेरी
तो क्यों सपनों की बारिश थी करी
अगर यही प्यार  है तो बस दुआ है मेरी
दोबारा ऐसा प्यार देना न किसी को कभी

लड़की ने तोड़ी अपनी पुरानी सब कड़ी
हाथ पकड़ एक अंजाने के संग चल पड़ी
विश्वास कर साथ उसके वो अब खड़ी
बिना सोचे  आगे आएगी कैसी अब घड़ी

अब सोचती हुं गलती ऐसी भी थी क्या करी
जो खुशियां मिल न पाई संग उसके कभी
आखिर उम्मिदें उससे ही तो थी बंधी
फिर किस गलती की सजा मुझको है मिली

अंत तो क्या होगा जाने न कोई कभी
ईश्वर ऐसा किसी के साथ न हो कभी
बस अब विनती तुझसे है यही मेरी
ऐसी जिंदगी देना न किसी को कभी

मैंने सोचा न था

जिंदगी का रुख यूं बदल जाएगा
मैंने सोचा न था
वक्त मेरा यूं बदल जाएगा
मैंने सोचा न था
कल तक चली थी जिन सपनों की
डोरी को थाम
कभी वो सपना भी बदल जाएगा
मैंने सोचा न था

बैठे बैठे मैंने भी थे कई
सपने बुने
सोचा था कांटों के बीच
फूल हम भी चुने
पर जिस बागबान की ओर
थे हम चले
उसका रास्ता भी युं बदल जाएगा
मैंने सोचा न था

सब कहते थे देख मेहनत मेरी
कल तू भी कुछ करेगी
अगर ऐसी ही लग्न के साथ
इस पथ पर चलेगी
हर दिन करी तैयारियां
कि उस लक्ष्य को पा हम सके
पर वो लक्ष्य ही यूं बदल जाएगा
मैंने सोचा न था

आज हुं निराश अगर तो
कसूर है सिर्फ मेरा
मंजिल थी सामने उसे खुद
से ही न कह दिया
तो दोष अब इसमें किसी का है कहां
बस सोचती हुं यही आज
मेरा वक्त यूं बदल जाएगा
मैंने सोचा न था
वो लक्ष्य यूं छिन जाएगा
मैंने सोचा न था

एक पल में सब कुछ बदल गया

बंधी एक अनदेखी डोर ऐसी
अब जिंदगी रही न पहले जैसी
एक पल में सब कुछ बदल गया
लोग कहते हैं तेरा ब्याह हो गया

महिनों चलती रहीं तैयारियां
लगती रहीं बुझती रहीं चिंगारियां
आखिर दिन आ गया जिसके लिए
माता पिता ने खूब पसीना बहाया

खिले खिले चेहरे दिखने लगे
चहकते हुए भाई बहन घूमनें लगे
द्वारे ढ़ोल बाजों संग आई बारात
पिता करे स्वागत ले फूलों का हार

आखिर आ ही गई अब वह घड़ी
जिसकी चाहत थी सबको बड़ी
दुल्हन दुल्हे संग  जयमाल लिए खड़ी
धड़कनें दोनों की ही थी बढ़ी

जयमाल संग खूब डीजे बजा
जमकर लोगों के बीच नाच हुआ
खा पीकर सब रहे मग्न
ऐसा रहा अभी तक का जश्न

अब रात जैसै जैसे आगे बढ़ने लगी
रस्मों की भी लगने  लगी झड़ी
दुल्हन पीली पचिया पहने थी खड़ी
मां बाप ने कन्यादान की रस्म अदा करी

फिर फेरों की शुरुआत हुई
दुल्हे संग दुल्हन थी अब चली
कर फेरे पूरे दुल्हे ने मांग जब भरी
वहीं से बिटिया फिर किसी की पराई हुई

अब आ ही गई बिदाई की वह घड़ी
जब आखें सबकी नम होने लगीं
पापा संग मां एक कोने में रोती हुई खड़ी
रोए भाई बहन भी याद कर बचपन की हर घड़ी

लड़की अब ससुराल की ओर है बढ़ी
सब दे दुआएं बेटी सुखी रहो तुम बड़ी
पर हो पाएगा जग में ऐसा तभी
जब बहु को भी बेटी मानेंगे सभी


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