संचार के बदलते माध्यम

               संचार के बदलते माध्यम

           कबूतर जा.. जा.. जा.. कबूतर जा.......                      चिट्ठी आई है.. आई है.. चिट्ठी आई है.......


जैसे गाने समय के साथ उपलब्धियां हासिल कर रहे  संचार माध्यमों को बखूब ही दर्शाते हैं........पहले के समय में कबूतरों को उड़ता देख ही लोगों के मन में ल होने लगती थी आखिर संदेश कहां जा रहा है वैसे ही 'डाक आया' का स्वर मानों मधुर संगीत की तरह कानों में गुंजता था...... हालांकि वहीं आज बढ़ती तकनीकी के साथ 'डाक आया'  का स्वर मोबाइल रिंगटोन में बदल गया है. आइए आज इन्हीं बदलते संचार माध्यमों पर बात करते हैं.......
                                  
पुराने समय में संदेश कबूतरों के जरिए पहुंचाये जाते थे, दादी जी अक्सर प्रियजनों की चिट्ठी के लिए डाकिए का इतंजार किया करती थी शायद कुछ हाल खबर मिल जाए. लेकिन तकनीक ने इस कदर करवट बदली की कबूतरों से शुरू हुआ दादी जी का अभियान डाकिए से होते हुए मुट्ठी भरके एक छोटे से खिलौने तक जा पहुंचा.दादी अब इंतजार नहीं बल्कि खुद ही फोन कर लोगों का हाल चाल ले लेती हैं.देशों की सीमाओं को तोड़ इस अविष्कार ने दुनिया को मुट्ठी में कर लिया है जो शायद पहले कल्पना जैसा था.
      मनुष्य के लिए संचार उसकी जीवन प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा है। दुनिया में लोगों को एक दूसरे से जुड़े रहने के लिए संचार माध्यमों की आवश्यकता है। आज मनुष्य का बिना संचार माध्यमों के गुजारा नामुमकिन है। 
संचार ऐसी प्रक्रिया है जिसका दुनिया के शुरू होने के साथ ही प्रारंभ हो गया था। प्राचीन समय में इस के लिए ज्यादा माध्यम उपलब्ध नहीं थे। फिर भी यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती थी। संचार साधनों की कमी के कारण पहले संदेश पहुंचाने में अधिक समय लगता था। हालांकि अब यह काम कुछ पलों में हो जाता है। 
आज के आधुनिक युग में संचार प्रक्रिया बहुत सरल हो गई है। बढ़ती टेक्नोलोजी के साथ मनुष्य आज  दुनिया के हर कोने से हर पल जुड़ा हुआ है। संचार के जब उपयुक्त साधन नहीं थे तब से लेकर अब तब संचार माध्यमों में कितनी उपलब्धियां हासिल हुई हैं आइए उनके बारे में बात करते हैं-

कबूतर का उपयोग:-



पहले के जमाने में कबूतर ही डाकिया का काम करते थे। राजा चंद्रगुप्त मौर्य के समय में संदेश भेजने के लिए कबूतर का उपयोग प्रचलन में आया। चंद्रगुप्त के बाद मुगलों ने भी संदेश भेजने के लिए कबूतरों का इस्तेमाल करना शुरु कर दिया। 19 वीं सदी में होने वाले विश्वयुद्ध तक कबूतर के माध्यम से संदेश भेजा जाता था। कबूतरों द्वारा संदेश भेजना इतना आसान भी नहीं था। इसके लिए उन्हें पहले प्रशिक्षित किया जाता था। जिसके लिए प्रशिक्षकों की जरूरत पड़ती थी। और यह एक लंबी प्रक्रिया बन जाती थी। 
आज हमें मैसेज भेजने के तुरंत बाद ‘ मैसेज सेंट‘ का मैसेज आ जाता है। जिससे तुरंत पता चल जाता है कि रिसीवर तक मैसेेज पहुंच गया है। लेकिन पहले के समय में यह तभी जान सकते थे जब रिसीवर उस संदेश का कोई जवाब दे। कबूतर द्वारा मेसेज भेजने के बहुत से फायदे भी थे, जैसे कि कबूतरों द्वारा संदेश भेजने के लिए नेटवर्क की आवश्यकता नहीं होती थी।
 कबूतरों के उड़ने की रफ्तार 16 मील प्रति घंटा होती थी। वह अपनी जगह से 1600 किमी आगे जाने पर भी रास्ता भटके बिना वापस आ जाते थे। वह चाहें आंधी आए या तूफान अपनी मंजिल तक पहुंच ही जाते थे। जबकि अगर आज नेटवर्क न मिले तो सारे संपर्क टूट जाते हैं। 

कबूतरों से जुड़े कुछ तथ्य:-

  • 19 वीं सदी में होने वाले विश्वयुद्ध तक कबूतर के माध्यम से संदेश भेजा जाता था।
  • कबूतरों के उड़ने की रफ्तार 16 मील प्रति घंटा होती थी।
  • वह अपनी जगह से 1600 किमी आगे जाने पर भी रास्ता भटके बिना वापस आ जाते थे।

दूतों द्वारा संदेश भेजना:-

राजा - महाराजाओं के समय में कबूतरों द्वारा संदेश भेजने के साथ - साथ दूतों का उपयोग भी प्रचलन में था। इसके लिए उन्हें घोड़ों का प्रबंध करना पड़ता था। एक तरह से यह उस समय रोजगार का जरिया भी था। उस समय उपयुक्त साधन न होने के कारण इस तरह से संदेश भेजने में महीनों लग जाते थे। 

तार का प्रयोग:-



तार द्वारा संदेश भेजने का प्रयोग स्काॅटलैंड के वैज्ञानिक डाॅ. माडीसन ने 1753 में किया। इसके बाद ब्रिटिश वैज्ञानिक रोनाल्ड ने 1838 में सार्वजनिक रूप से तार द्वारा संदेश भेजने की व्यावहारिकता का प्रतिपादन किया। आजकल के तार भेजने का श्रेय अमेरिकी वैज्ञानिक , सैमुएल एफ. बी. माॅर्स को जाता है। इन्होंने 1844 में तार द्वारा खबरें भेजकर इसका सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन किया। भारत में ब्रिटिशरों के जमाने में तार द्वारा संदेश भेजने की शुरूआत हुई। 1853 में कोलकाता से आगरा तक तार भेजने की सेवा शुरू हुई। तार द्वारा हम लिखकर तो संदेश भेज सकते थे लेकिन एक दूसरे से बात नहीं कर सकते थे। यह कमी आगे आने वाले समय में पूरी हुई।

तार से जुडे़ कुछ तथ्य:-

  • पहली बार स्काॅटलैंड के वैज्ञानिक डाॅ. माडीसन ने 1753 में तार द्वारा संदेश भेजने का प्रयोग किया।
  • भारत में तार की शुरूआत 1853 में हुई। 
डाॅट फोन का आविष्कार:-


डाॅट फोन लोगों के लिए उस समय का चमत्कारी आविष्कार था। वह सोच भी नहीं सकते थे कि वह दूर दराज बैठे भी किसी की आवाज सुन सकते हैं। डाॅटफोन का आविष्कार ऐलेक्जेंडर ग्रैहैम बेल ने अपने सहायक टाॅमस वाट्सन की सहायता से किया। वह यह यंत्र 10 मार्च 1876 ई. में बनाने में सफल हुए। पहले के समय में घर में डोट फोन होना प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता था। डाॅट फोन के बाद संचार माध्यमों ने नए प्रतिमान गढ़ने शुरू कर दिए। इसके बाद संचार के लिए बहुत ही चमत्कारी उपकरण देखने को मिलें। 
पहले  के समय में हर कोई इतना सक्षम नहीं था कि वह अपने घर में फोन रख सके। इसलिए डोट फोन के आविष्कार के बाद जगह - जगह पीसीओ खोले गए। जिसके कारण सभी लोग इस सेवा का लाभ उठाने में सक्षम हो गए।

डोट फोन से जुडे़ कुछ तथ्य:-

  • इसका आविष्कार ऐलेक्जेंडर ग्रैहैम बेल व उनके सहायक टाॅमस वाट्सन ने किया।
  • 10 मार्च 1876 ई ़ में यह यंत्र बनकर तैयार हुआ।

सेल/मोबाइल का उपयोग:-

1947 में यूएस में सबसे पहला मोबाइल फोन बनाया गया था। सह फोन एटी एंड टी की लैब में बना था। 1950 के दशक में फोन का प्रयोग केवल सिविल सर्विसेज के लिए होता था। आम आदमी के लिए यह सुविधा 1973 में उपलब्ध हुई। अमेरिकन इंजीनियर मार्टिन कूपर ने 3 अप्रैल, 1973 में विश्व को पहला मोबाइल फोन दिया। 
पहले संचार माध्यमों के द्वारा हम संदेश या तो लिखकर भेज सकते थे या बात कर सकते थे। दोनों काम एक साथ करना संभव नहीं था। परंतु मोबाइल फोन के आविष्कार से यह संभव हो गया है। आज हम ई-मेल, टेक्स्ट मेसेज, काॅलिंग व वीडियो काॅलिंग कुछ पलों में किसी भी रूप में कर सकते हैं।

सेल/मोबाइल से जुडे़ कुछ तथ्य:-

  • 1947 में यूएस में सबसे पहला मोबाइल फोन बना।
  • आम आदमी को मोबाइल सुविधा 1973 में मिली।

आज विश्व ने संचार माध्यमों के क्षेत्र में काफी उपलब्धियां हासिल कर ली हैं। प्राचीन काल में कबूतर द्वारा संदेश भेजने से लेकर आज मोबाइल  फोन के इस्तेमाल के बीच काफी बदलाव देखने को मिले। आज बढती टेक्नोलोजी के साथ संचार प्रक्रिया बहुत सरल हो गई है।

अगर पहले के संचार उपकरणों से आज के संचार उपकरणों की तुलना करें तो इसमें कोर्इ दोराय नहीं है कि पहले जब संदेश भेजना महीनों का काम था वहीं आज संदेश भेजना कुछ पलों का काम रह गया है। 
प्राचीन समय में लोगों का फेस टु फेस  बात करना संभव नहीं था, जबकि आज यह वीडियो काॅल व अन्य सुविधाओं द्वारा संभव है। 

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