निजता का अधिकार

                                निजता हमारा मूल अधिकार 



सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को निजता के अधिकार पर एक अहम फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहड़ की अगुवाई वाली 9 न्यायाधीशों की पीठ ने निजता के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार करार दिया है। यह अनुच्छेद हमारे जीवन की और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है। वहीं न्यायालय ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा कि निजता मानवीय गरिमा का संवैधानिक मूल है। न्यायालय के इस फैसले का आधार के इस्तेमाल पर निश्चित ही असर पड़ेगा। वहीं निजता के अधिकार के लिए लंबे समय से  जंग कर रहे योद्धाओं की भी जीत हुई है।
निजता का अर्थ किसी व्यक्ति की निजी बातें या निजी जानकारियों से होता है। ऐसी बातें जो कि वह किसी के साथ नहीं बांटना चाहता है।  ऐसे ही किसी अन्य व्यक्ति को भी यह अधिकार नहीं होता है कि वह किसी की निजी जानकारी बिना उसकी स्वेक्षा के ले सके। ऑक्सफोर्ड शब्दकोश के मुताबिक निजता एक ऐसी स्थिति है जिसमें किसी व्यक्ति को ना तो दूसरा व्यक्ति परेशान करता है और ना तो उस पर नजर रखता है। इसके मुताबिक निजता को 'सार्वजनिक निगाह से मुक्त होने की स्थिति' बताया गया है। इस लिहाज से कोई किसी को अपनी निजी जानकारी  देने के लिए बाध्य नहीं कर  सकता है।
अब जबकि निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया है तो आधार कार्ड का क्या होता है यह सवाल उठना लाज़मी है, क्योंकि हाल ही में आधार कार्ड से जुड़ी कई याचिकाएं न्यायालय में  दायर हुई थी। जिनके जरिए लोगों ने यह शिकायत रखी कि हर जगह आधार कार्ड लगाना सुरक्षित नहीं रहता है। उसके जरिये उनकी निजी जानकारियां आसानी से कोई भी निकाल सकता है।  याचिकाओं का आधार था कि आधार कार्ड की वजह से निजता का हनन होता है या नहीं ? हालांकि इस पर सुनवाई न्यायालय में तीन सदस्यिय संविधान पीठ करेगी। अब जबकि निजता को मूल अधिकार माना गया है तो इस पीठ के लिए फैसला करना आसान होगा। आधार से निजता का उल्लंघन होता है कि नहीं अब इस सवाल का जवाब खोजना भी आसान हो गया। हालांकि यदि आधार कार्ड के व्यापक इस्तेमाल पर रोक लगी तो सरकारों को अपनी बहुत सी योजनाओं में उचित बदलाव करने होंगे।
सालों से निजता का अधिकार एक पहेली बना हुआ था कि आखिरकार निजता मूल अधिकार है या नहीं? क्योंकि निजता के अधिकार पर पहले हुई सुनवाइयों में  1954 में एम पी शर्मा  मामले में   आठ जजों की बेंच ने और  1962 में खड़क सिंह मामले में छह जजों की बेंच ने  इससे असहमति जताई थी। वहीं निजता का मामला दोबारा सुर्खियों में आधार कार्ड के व्यापक इस्तेमाल की वजह से आया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सरकार और निजी कंपनियां विभिन्न योजनाओं और सेवाओं के लिए आधार के इस्तेमाल को अनिवार्य करती जा रही थी। 2012 में कर्नाटक उच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त न्यायाधीश पुत्तस्वामी ने याचिका दायर कर सर्वोच्च न्यायालय में कहा था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है। वहीं फैसला उनके पक्ष में भी आया है।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है। साथ ही  हमारे देश में सबको स्वतंत्रता से रहने की अधिकार है। सभी लोग अपना जीवन अपने तरीके से जीने के लिए स्वतंत्रता है। व्यक्तियों के लिए उनकी निजता उनका अधिकार होती है लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं था कि निजता मूल अधिकार है कि नहीं है। लेकिन अब 9 न्यायाधीशों की पीठ ने इसको मूल अधिकार बताया है इससे अब यह बात साफ हो चुकी है कि सरकार या कोई भी किसी भी व्यक्ति की निजता में खलल नहीं डाल सकते है।
इस फैसले से निश्चित ही आधार कार्ड पर अधिक प्रभाव पड़ेगा। क्योंकि अब हर जगह चाहे सरकार हो या कोई निजी कंपनियां सभी  आधार कार्ड की मांग करती थी। वहीं  अनिवार्य होने के कारण हर किसी को मजबूरन आधार कार्ड लगाना ही पड़ता था। यहां तक की कई बार देखा गया कि कई कंपनियों में जब कोई नौकरी के लिए जाता था तब वहां भी आइडेंटिफिकेशन और प्रूफ के लिए भी आधार कार्ड ही मांगा जाता था। लेकिन उनकी सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं होते हैं। वैसे ही सरकार भी आधार कार्ड के इस्तेमाल को व्यापक रुप से बढ़ाती जा रही थी। लेकिन उसके लिए उन्होंने कोई सिक्योरिटी के इंतजाम नहीं किए थे। आधार कार्ड के जरिए हमारी हर तरह की  निजी जानकारियां इधर-उधर हो सकती थी । लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आधार कार्ड पर भी उचित कदम उठाए जा सकते हैं।
हमारे देश में डेटा सुरक्षा को लेकर अक्सर सवाल उठते हैं। लेकिन इस दिशा की ओर कदम उठते नहीं दिख रहे थे। लेकिन अब निजता के मूल अधिकार बनने के बाद शायद इस दिशा की ओर भी कुछ उचित बदलाव देखने को मिलें। न्यायालय के इस फैसले के बाद अब शायद लोगों की निजी जानकारियाें को सुरक्षित रखने के लिए कुछ व्यापक फैसले जरूर लिए जाएंगे। जिससे कि वह लोगों को भी सुरक्षित रख सकें और एक विश्वास पैदा कर सकें कि उनकी निजी जानकारियां सुरक्षित हैं।

इंसा नही इंसानियत के काबिल


                                              इंसा  नही इंसानियत के काबिल     

25 जून को डेरा प्रमुख राम रहीम के दोषी करार दिए जाने के बाद अब राम रहीम को दो रेप के मामलों में 20 साल की सजा दी गई है। इसके मुताबिक अगले 20 साल तक नहीं उसे अपने किए का भुगतान करना पड़ेगा। सालों से लोगों का भगवान बना राम रहीम तो एक सच्चा इंसान भी न साबित हुआ। इसके साथ ही  उसके और भी कई कारनामें सामने आए और आरोप लगे। राम रहीम पर अपनी सच्चा डेरा के आदमियों को नपुंसक बनाने और कई अन्य युवतियों का शोषण करने की बात सामने आई। वैसे भी कहते कि पाप का घड़ा कभी ना कभी भरता जरूर है। यह बात राम रहीम ने जरूर अपने किसी ने किसी प्रवचन में जरूर कही होगी। तब वह यह नहीं जानते होंगे कि उनके पाप का घड़ा भी करेगा। हालांकि इस फैसले के साथ यह बात भी साबित हो गया कि हमारे देश में कानून ही सबसे बड़ा है। चाहे किसी का आैधा कितना भी बड़ा हो लेकिन उसे अपनी की गई गलतियों की सजा जरुर मिलती है।
इंसा को दोषी करार दिए जाने के बाद उसके समर्थक कौन है काफी बवाल किया। इस मामले के बाद में एक बहुत गहरा सवाल उमड़कर आया आखिर लोग जिन्हें भगवान मानते हैं, वह इतने बड़े शैतान कैसे हो सकते है? हमारे देश में लोगों को भगवान बनाना एक आम बात है,  लेकिन अगर आश्चर्यजनक बात कोई है तो वह यह कि उनके भक्त उनकी गलती जानने के बाद भी उन्हें  भगवान की पदवी पर कैसे रख सकते है?  वह कैसे भूल जाते हैं की असल भगवान अपने भक्तों को दुख में नहीं देख सकता और ना ही किसी की तकलीफ का कारण बन सकता है। लोग यह भूल जाते हैं कि आज उनके भगवान की वजह से जो लोग दुख में हैं या जिन लोगों को तकलीफ सहनी पड़ी है उनकी जगह वह भी हो सकते थे। लेकिन हकीकत में जब लोगों पर जब खुद बितती है तभी वह किसी की तकलीफ समझ सकते हैं। लोगों को यह समझना चाहिए किसी की भक्ति करना तो सही है लेकिन उसे भगवान बनाकर खुद अंधभक्त बनना गलत है।

महिलाओं को अब नहीं होगी तीन तलाक की फांसी

मुस्लिम महिलाओं को अब नहीं होगी तीन तलाक की फांसी

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तीन तलाक पर फैसला सुनाते हुए मुस्लिम महिलाओं को हमेशा के लिए तीन तलाक के फंदे से आज़ाद कर दिया। फैसला सुनाने के लिए बैठे पांच जजों में से तीन जजों ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया। दो जजों ने तीन तलाक को गलत माना लेकिन उन्होंने कहा कि इसके खिलाफ कानून सरकार बनाएगी। जिसके लिए सरकार को छह महीने का समय दिया गया है। तीन तलाक खत्म करने के फैसले से भारत की नौ करोड़ मुस्लिम महिलाओं  को अब टार्चर से रोका नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के इस अहम फैसले के बाद मुस्लिम औरतों को आजादी से जीने का हक प्राप्त होगा। भविष्य में उनके अधिकारों का हनन नहीं होगा। 
  हालांकि इस फैसले मौलाना लोगों ने सरासर इंकार कर दिया। 10 सितंबर को इस फैसले के संदर्भ में  आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ की बैठक होगी।
   तीन तलाक पर मुस्लिमऔरतों ने पूछा कि आखिर तीन तलाख के बारे में कुरान में कहां लिखा है? जबकि कुरान में तीन तलाक का वर्णन कहीं नहीं है।

तीन तलाक पर  पांच महिलाओं की जीत

सुप्रीम का यह फैसला पांच महिलाओं की जद्दोजहद का नतीजा है। सायरा बानो, जाकिया सोमन,आतिया साबरी,गुलशन परवीन, इशरत जहां और आफरीन रहमान इस फैसले की जीत का सिरा इन पांचों से जुड़ा हुआ है। इन महिलाओं ने एक बार में तीन तलाक देने के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर करी थी।

इस ऐतिहासिक फैसले के बाद में नतीजा यह होगा कि कोई भी शौहर अपनी पत्नी को मनमाने ढंग से तीन तलाक नहीं दे सकेगा। औरतों के साथ नाइंसाफी नहीं हो पाएगी।

तीन तलाक पर जजों की टिप्पणी

प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर व जस्टिस अब्दुल नजीर तीन तलाक पर सरकार के  कानून बनाने की बात कही है। जबकि जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस यू यू ललित, व जस्टिस आरएफ नरीमन ने तीन तलाक को पूरी तरह असंवैधानिक करार दिया। तीन तलाक के खिलाफ तीन जजों का बहुमत महीने के बाद तीन तलाक खत्म करने का फैसला दिया गया साथ ही सरकार को छह महीने के अंदर कानून बनाने का आदेश भी मिला।

कुछ अहम  टिप्पणियां

1. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा यह फैसला किसी की हार या जीत का नहीं बल्कि मुस्लिम औरतों के संवैधानिक अधिकारों की जीत का है।

2. आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि मौलानाओं की शरीयत औरतों के साथ जुल्म करती है।

3. याचिका दायर करने वाली शायरी ने कहा तीन तलाक से मेरी जिंदगी बर्बाद हो गई

4. मेनका गांधी ने कहा कि उन्हें फैसले से खुशी है साथ ही उन्होंने यह भी बोला कि सरकार इस पर कानून जरुर बनाएगी। उन्हें कानून बनाने से कोई दिक्कत नहीं है।

कलिंग उत्कल एक्सप्रेस का भयावह मंजरः हादसा या लापरवाही.....?

कलिंग उत्कल एक्सप्रेस का भयावह मंजरः
हादसा या लापरवाही.....?


उत्तर प्रदेश में शनिवार की शाम फिर गम के बादल छा गए। चारों ओर लोगों की चीत्कार सुनने को मिली। कई लोग अपने परिवार को ढूंढ रहे थे तो कई लोग अपने परिवार के लोगों की हुई मृत्यु पर रोते बिलखते नजर आ रहे थे। पिछले साल 20 नवंबर 2016 को पुखरायां रेल हादसे  का मंजर लोगों के जेहन से अभी निकला भी नहीं था कि मुजफ्फरनगर में हुए रेल हादसे में एक बार फिर रेल की सुरक्षा को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है या यूं कहें फिर रेल की लापरवाही का खामियाजा मासूमों को भुगतना पड़ा।शनिवार की शाम कलिंग उत्कल एक्सप्रेस में सफर कर रहे यात्री यह सोच भी नहीं सकते थे कि उनके लिए उस शाम का मंजर इतना भयावह होगा। यात्री रेल में बैठने के पहले यह सोचते हैं कि रेल से सफर तो उन्हें सुरक्षित उनकी मंजिल तक पहुंचा देगा। लेकिन शायद अब उत्कल एक्सप्रेस के हादसे के बाद लोगों के मन में रेल के सफर की तस्वीर कुछ और ही होगी। इस हादसे के बाद लोगों के जेहन में रेल की सुरक्षा को लेकर संदेह उठना तो लाजमी है। 

मुजफ्फरनगर के खतौली में शनिवार शाम को पुरी से हरिद्वार जा रही कलिंग उत्कल एक्सप्रेस सिस्टम की घोर लापरवाही की वजह से हादसे का शिकार हो गई। इस हादसे में 30 से ज्यादा लोगों की मृत्यु की आशंका है। वहीं 150 से ज्यादा लोगों के घायल होने के बारे में पता चला है। हादसे का मंजर इतना भयावह था कि ट्रैन के लगभग कोच एक दूसरे के ऊपर चढ़े हुए थेउन्हीं में से एक कोच पटरी के किनारे बने एक घर में घुस गया था और दूसरा कोच एक कॉलेज में जा घुसा था। हालांकि इस हादसे का कारण सिस्टम की घोर लापरवाही बनी है। जानकारी के अनुसार पता चला कि ट्रैक पर आगे काम चल रहा था। जिसकी जानकारी चालक को नहीं मिल पाई थी। इसके लिए चालक को कॉशन की सूचना दी जानी थी जोकि समय से नहीं दी गई। सूचना समय से ना मिल पाने की वजह से यह हादसा हुआ। खतौली रेलवे स्टेशन से आगे जहां दुर्घटना हुई वहां पटरी पर काम चल रहा था। पटरी पर प्लेटे कसी जा रही थी  इस बात की पुष्टि वहां मौके पर पड़ी मशीनें और लाल कपड़े से हो रही थी।

पुखरायां में इंदौर-पटना एक्सप्रेस हादसे में 14 डिब्बे पटरी से उतरे थे। जिसमें 100 से ज्यादा यात्रियों की मौत हुई थी और 300 से ज्यादा लोगों के घायल होने की सूचना मिली थी। पुखरायां रेल हादसे में रेलवे की कई गलतियां सामने आई थी ट्रेन की रफ्तार भी ज्यादा थीट्रैक भी टूटा हुआ था। हादसे के समय रेलवे से हुई लापरवाहियों के बाद सिस्टम पर काफी सवाल उठे थे। उन लापरवाहियों के सामने आने के बाद यह माना जा रहा था कि आगे भविष्य में शायद इन गलतियों से सबक लिया जाएगा और दोबारा ऐसी स्थिति नहीं उत्पन्न होने दी जाएगी। लेकिन अब मुजफ्फरनगर में हुए और कलिंग उत्कल एक्सप्रेस हादसे ने यह साबित कर दिया है कि रेलवे प्रशासन को मासूमों की जिंदगी का कितना मोल है। हादसों में हुई लोगों की मौत का मुआवजा देना ही वह अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। रेलवे की लापरवाहियों के चलते बार बार रेल हादसे हो रहे हैं जिसमें रेलवे की कई लापरवाहियाँ उजागर हुईं हैं। इन लापरवाहियों पर कुछ समय तक बात करके वहीं छोड़ दिया जाता है और फिर बात तब तक नही उठती है जब तक की दूसरा हादसा न हो जाए।

हालांकि पिछले 2 साल में कई रेल हादसे सामने आए 20 मार्च, 2015 को देहरादून से वाराणसी जा रही जनता एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी। इस हादसे में तकरीबन 34 लोग मारे गए थे। 20 नवंबर 2016 को कानपुर के पास पुखरायां में पटना-इंदौर एक्सप्रेस के 14 कोच पटरी से उतर गए थे। यह एक बड़ा रेल हादसा था जिसमें 150 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई 300 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। 28 दिसंबर 2016 को अजमेर सियालदह एक्सप्रेस के पटरी से उतर जाने से 2 लोगों की मौत हो गई और कई यात्री घायल हो गए। यह हादसा बुधवार सुबह 5 बजकर 20 मिनट पर कानपुर से पचास किलोमीटर दूर इटावा रुट पर रुरा और मेठा स्टेशन के बीच हुआ। 22 जनवरी 2017 को आंध्रप्रदेश के विजयनगरम ज़िले में हीराखंड एक्सप्रेस के आठ डिब्बे पटरी से उतरने की वजह से तकरीबन 39 लोगों की मौत हो गई।

वहीं 2 अगस्त 2017 को दिल्ली-हावड़ा रेल मार्ग पर सुबह 8 बजे के करीब एक बड़ा हादसा होने से बच गया। लखनऊ जा रही स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन के छठे और पांचवें डिब्बे की कपलिंग टूट गई थी जिसके कारण ट्रेन में झटके लग रहे थे। वहीं ट्रेन के सतर्क चालक ने समय रहते गड़बड़ी को समझकर आपातकालीन ब्रेक लगा दिए। यह घटना खुर्जा जंक्शन रेलवे स्टेशन के पास हुई थी। 

पिछले दिनों हुए कई हादसों ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या वाकई में रेल प्रशासन यात्रियों की सुरक्षा को लेकर सक्रिय है? क्या यात्रियों की सुरक्षा में भरपूर कदम उठाए जा रहे हैं? साथ ही एक यह बिंदु भी सामने आता है कि कहीं इन हादसों के पीछे कोई साजिश तो नहीं है। सरकार को इस बात की पूरी जांच करनी चाहिए कि आखिर इतने गंभीर हुए हादसों का कारण क्या है

वैसे तो किसी की मौत का जिम्मेदार होने पर उसे सजा दी जाती है। वहीं  इन रेल हादसों में कई मासूमों की मौत हो गई। जिसका एकमात्र कारण रेलवे प्रशासन के कुछ लोगों की लापरवाही थी। उन मासूमों की मौत की जिम्मेदार  उनकी लापरवाही बनी। अब उनके लिए क्या सजा निर्धारित होनी चाहिए इस बात का जवाब तो रेलवे प्रशासन ही दे पाएगा। 

अब देखने वाली बात यह है कि ऐसी लापरवाही करने वालों को सरकार क्या सजा देती है? क्या लोगों की जान इतनी सस्ती हो गई है कि उस पर इतनी लापरवाही बरती जा सकती है? जो यात्री पुरे विश्वास के साथ रेल में बैठते हैं उनके विश्वास के साथ तो खेल हो रहा है। अब इतनी बड़ी लापरवाही के बाद फिर प्रशासन मुआवजा देने की बात कहेगा। शायद सरकार मुआवजा तो दे सकती है लेकिन जिन्होंने अपने परिवार के लोगों को खोया है , जिनके परिवार उजड़े हैं क्या उनके परिवारों की खुशहाली वापस लौटा सकती है? हालांकि अब यह सवाल  आम हो चुका है क्योंकि बार-बार उठता है और हर बार सरकार पीड़ितों के प्रति संवेदना प्रकट कर इन सवालों से बच जाती है।

अब इस कलिंग उत्कल एक्सप्रेस हादसे के बाद रेलवे प्रशासन की जनता की ओर जवाबदेही निश्चित ही बनती है। उन्हें जनता को यह बताना होगा कि क्या आगे आने वाले भविष्य में रेल का सफर उनके लिए सुरक्षित रहेगा। एक तरफ रेल प्रशासन देश को मेट्रो की सुविधा देने की बात कर रहा है, देश में बुलेट ट्रेन चलाने की बात कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ वर्तमान में मौजूद साधारण रेल यात्रा भी लोगों के लिए सुरक्षित नहीं है। रेल प्रशासन को यात्रियों को मेट्रो मुहैया कराने से पहले एक सुरक्षित सफर का विश्वास दिलाना होगा। 

आखिर रेल प्रशासन कब जागेगा? वह कब समझेगा कि लोगों की जिंदगी इतनी सस्ती नहीं है। जनता में विश्वास जगाने के लिए अब प्रशासन को इन हादसों की पूरी जांच करानी चाहिए। साथ ही रेलवे की सुरक्षा में कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए जिससे कि लोगों का सफर खौफ में ना बीते।






सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला


सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला


हाल ही में शिक्षामित्रों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिये गये फैसले से यह बात साफ हो चुकी है कि शिक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं होने दिया जाएगा। 2013 में हुए शिक्षामित्रों के समायोजन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार समायोजन रद्द कर दिया गया है। इस फैसले के अनुसार समायोजन के बाद जो शिक्षामित्र सह अध्यापक बने थे उन्हें उनके पद से हटा दिया गया है। फैसले के अनुसार अब शिक्षामित्रों को अपना सह अध्यापक का पद पाने के लिए पूरी योग्यता हासिल करनी होगी।  भविष्य में प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था के लिए यह एक उचित फैसला साबित हो सकता है।

26 मई 1999 को उत्तर प्रदेश सरकार ने एक आदेश जारी किया था।  इस आदेश के तहत शिक्षामित्र नियुक्त किए गए थे। यह भर्तियां दिन प्रतिदिन घट रहे शिक्षक और छात्रों का अनुपात को ठीक करने के उद्देश्य की गई थी। 1 जुलाई 2001 को सरकार ने एक और आदेश जारी कर इस योजना को और विस्तृत रुप प्रदान किया। सरकार ने जून 2013 में 172000 शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के तौर पर समायोजित करने का निर्णय लिया। सरकार के इस फैसले से उस समय शिक्षामित्रों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। सरकार ने अपने लिए गए इस फैसले के दौरान इस बात पर विचार ही नहीं किया कि जिन शिक्षामित्रों को वह सहायक शिक्षक का पद देने जा रहे हैं, क्या वह इस पद के योग्य है भी या नहीं? वहीं इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई जिसके आधार पर हाईकोर्ट ने जरूरी योग्यता ना होने पर 12 सितंबर 2015 को शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द कर दिया था। हालांकि इस फैसले का विरोध करते हुए शिक्षामित्र व राज्य सरकार  सुप्रीम कोर्ट गए थे। वहीं कोर्ट में यह मामला कुछ समय के लिए लंबित रहा। फैसला लंबित रहने के दौरान  172000 में से 138000 शिक्षामित्र सहायक शिक्षक के पद पर समायोजित कर दिए गए। 

वहीं समायोजन के बाद इतने समय से लंबित रहे मामले में आए फैसले से शिक्षामित्रों को बड़ा झटका लगा है। जहां कोर्ट ने समायोजन रद्द करने का फैसला लिया है वहीं कोर्ट ने शिक्षामित्रों को एक राहत भी दी है। शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक का पद दोबारा पाने के लिए जरूरी योग्यता हासिल कर दो भर्तियों में भाग लेने का मौका देने के लिए भी कहा है। साथ ही उनके अनुभव को भी प्राथमिकता देने की बात कही है। वहीं दूसरी ओर जो शिक्षक टीईटी की बजाय एकेडमिक मेरिट के आधार पर भर्ती हुए थे उन सहायक शिक्षकों को राहत प्रदान की गई है। साथ ही यह भी साफ कर दिया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश पर टीईटी की मेरिट के आधार पर नियुक्त हो चुके 66655 सहायक अध्यापकों की भर्ती को नहीं छेड़ा जाएगा। 
असल में इस ओर ध्यान तब दिया गया जब योग्य शिक्षक बेरोजगार थे और अयोग्य व्यक्ति शिक्षक बने हुए थे। प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ा रहे लगभग शिक्षकों को सही शब्द तक लिखने नहीं आते थे। ऐसे में  यह सोचने वाली बात थी कि आखिर ऐसे शिक्षकों से बच्चे किस प्रकार की शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। इस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था के अनुसार शिक्षा का स्तर दिन-प्रतिदिन नीचे ही जा रहा था। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिया गया यह फैसला महत्वपूर्ण साबित हुआ। अब फैसले के अनुसार जबकि समायोजन रद्द कर दिया गया है ऐसे में बिना योग्यता के कोई भी व्यक्ति सह अध्यापक का पद नहीं पा पाएगा। साथ ही भविष्य के लिए भी इस तरह की स्थितियों से बचा जा सकेगा।

भविष्य के लिए यह फैसला लाभकारी साबित होगा क्योंकि यदि छात्रों को शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षक योग्य होंगे तो निश्चित बच्चे अच्छी शिक्षा पा सकेंगे। शिक्षक यदि योग्य ही नहीं होंगे तो बच्चे कैसी शिक्षा प्राप्त करेंगे इस बात का अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है। आज के बच्चे देश के लिए उसका कल का भविष्य है। वह हमारे देश की आने वाली पीढी है। यदि आज उनकी शिक्षा के साथ  खिलवाड़ होता है तो यह देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा।

इस बात से कोई अनजान नहीं है कि किसी भी देश के लिए उसकी शिक्षा व्यवस्था ही उस का दर्पण होती है। इसीलिए शिक्षा के उच्च प्रतिमान गठित किए जाते हैं ताकि देश का विकास हो सके। यदि शिक्षा का उचित स्तर नहीं है तो वह देश की तरक्की के पथ पर अधिक समय तक आगे नहीं बढ़  सकता है। देश की तरक्की में उसकी शिक्षा व्यवस्था का बहुत बड़ा योगदान होता है क्योंकि आज के समय में अन्य किसी भी देश के शिक्षा स्तर से कोई अनजान नहीं है। देश का विकास उसकी शिक्षा व्यवस्था पर निर्भर होता है। ऐसे में यदि देश में उचित शिक्षा व्यवस्था नहीं स्थापित करी जाएगी तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि अन्य देशों के मुकाबले देश  पिछड़ता ही चला जाएगा।

वहीं अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा समायोजन रद्द करने के फैसले के विरोध में मौजूदा शिक्षामित्र स्कूल नहीं खोल रहे हैं। इस तरह प्रदेश के लगभग हजार स्कूल प्रभावित हो रहे हैं। वही कई प्रदेशों में शिक्षामित्रों ने धरना देकर अपनी मुश्किलों का हल मांगा है। इसके लिए प्रदेश सरकार को जल्द ही कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने चाहिए।  सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले के अनुसार जल्द से जल्द अखबारों में भर्तियों के लिए विज्ञापन देकर रिक्त पदों को भरें। ताकि इसके कारण पढ़ाई बहुत अधिक प्रभावित ना हो।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि मौजूदा शिक्षामित्र जोकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से प्रभावित हुए हैं वह निराश हैं परंतु उनके पास अभी भी मौका है वह जरूरी योग्यता हासिल करें और दो भर्तियों में शामिल होकर अपना पद दोबारा पा सकते हैं। साथ ही यूपी सरकार ने यह आश्वासन भी दिलाया है कि समायोजन रद्द होने के बाद भी किसी को नौकरी से नहीं हटाया जाएगा। ऐसी परिस्थितियों में सभी शिक्षा मित्रों को धैर्य से काम लेना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए उचित प्रयास करने चाहिए ताकि वह अपना पद वापस पा सकें।

जिंदगी के अनमोल रिश्ते

जन्म होते ही बनते रिश्ते जिंदगी के अनमोल रिश्ते पालने में झुलता बचपन नए रिश्ते संजोता बचपन औलाद बनकर जन्म लिया संग कई रिश्तों को जन्म द...