क्या आज भी गौ हमारी माता है

                           क्या आज भी गौ हमारी माता है ?



''विनाश काले विपरीत बुद्धि'' आजकल उक्त पंक्तियां कांग्रेस पार्टी पर चरितार्थ होती हैं। हाल ही में केरल में यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं  ने मोदी विरोध के चलते सरे चौराहे पर गाय को काट करअपना असली चेहरा दिखा दिया। उन्होंने पहले गाय को काटा और फिर वहीं उसको पका कर थालियों में परसा भी। वहीं बड़े गर्व से इस को इन्होंने  बीफ फेस्टिवल का नाम दिया। ऐसी हरकतें कांग्रेस करती रही तो निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि आने वाले समय में कांग्रेस की स्थिति बद से बद्तर हो सकती है। इसमें कोई संदेह नहीं  कि इस तरह की हरकतों से लोगों की आस्था को चोट पहुंचेगी और निश्चित ही लोग इस पार्टी से दरकिनार होंगे। कांग्रेस मोदी लहर का विरोध करने के चक्कर में कुछ भी करने को उतारू है। यहां तक कि वह लोगों की आस्था को कुचलते हुए गाय जैसे मासूम जानवर को काटने से भी नहीं चूक रहे हैं।

इस बात से कोई अनजान नहीं की गाय हिंदू आस्था का प्रतीक है। इसे हमारे हिंदू धर्म में माता का रूप माना जाता है। भारतवर्ष में मां मानकर गाय को पूजा जाता है। वहीं  हम बचपन से यह सुन कर बड़े हुए ''गाय हमारी माता है,हमको सब कुछ आता है'' वहीं अब हालातों के चलते हम यह कह सकते हैं कि ''गाय हमारी माता है,यह अब किसी को नहीं आता है''। मौजूदा हालातों में आज यह सवाल सबकी जवान पर है 'क्या गाय आज भी हमारी माता है '? अगर है तो क्या कोई इंसान अपनी माता के साथ यह व्यवहार कर सकता है। जो कि आजकल गाय के साथ में हो रहा है। कभी धर्म के नाम पर, तो कभी राजनीतिक फायदे के लिए उसको मार काट कर उसका इस्तेमाल किया जाता है। वहीं कुछ लोगों ने इनकी रक्षा के नाम पर दल बनाकर लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया।

हालही में हो रहे गाय के साथ व्यवहार को देखते हुए यह समझ पाना मुश्किल है कि क्या वाकई में हम आज हिंदुस्तान में रह रहे हैं। वह हिंदुस्तान जहां पर लंबे समय से गाय को एक मां का दर्जा दिया जाता रहा है। वहीं आज लोग इतने निर्लज्ज और कुंठित होते जा रहे हैं कि वह यह भूल जाते हैं कि वह एक मासूम जानवर है। जिसका इस्तेमाल वह अपने चंद फायदों के लिए कर रहे हैं। आखिर विश्वास नहीं होता है कि लोग इतने निर्लज्ज और कुंठित कैसे हो सकते हैं कि मानवता की बलि चढ़ाने से भी नहीं चूकते। आखिर यह सोचने वाली बात है कि क्या ऐसी बर्बरता को यूं ही माफ किया जा सकता है? जिन्होंने ऐसा घिनौना काम किया है क्या वास्तव में वह हिंदुस्तानी कहलाने के लायक है?

माना जा रहा है कि कांग्रेस यूथ पार्टी की इतनी हिम्मत इसलिए हो गई क्योंकि केरल जैसे राज्य में कम्युनिस्ट का शासन है। साथ ही वहां पर बीफ पर कोई प्रतिबंध भी नहीं है। वहां पर कांग्रेस अपना दल बनाना चाह रही है। इसके लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार है। कांग्रेस को अन्य पार्टियों का विरोध करने से पहले अपने पार्टी संगठन के सुधार पर ध्यान देना चाहिए। हाल ही में हुए इस घटनाक्रम से स्पष्ट होता है कि कांग्रेस में अब नियंत्रण खत्म हो गया है। ऊपरी शीर्ष स्तर  कुछ कह रहा है तो वहीं निचले स्तर के कार्यकर्ता दूसरी हरकतें कर रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण केरल में मनाया गया फेस्टिवल है। 

कांग्रेस ने उन कार्यकर्ताओं को निलंबित कर दिया है जो इस घटना के पीछे थे। लेकिन सिर्फ उनको निलंबित करने से कुछ नहीं होगा इसका विरोध जताने का मात्र यही उपाय नहीं है। इससे हो रही निंदा को ध्यान में रखते हुए पार्टी को ऐसे कार्यकर्ताओं को पार्टी से निकाल देना चाहिए। अगर कांग्रेस ने अपनी हरकतों को न सुधारा आने वाले हिमाचल प्रदेश के चुनाव पर भी असर पड़ सकता है।

भाजपा सरकार को भी गाय की सुरक्षा को लेकर अपनी नीति स्पष्ट करनी होगी। एक तरफ सरकार गाय की  खरीद फिरोद पर रोक रोक लगा रही है वहीं दूसरी तरफ स्लाॅटर हाउस को बार बार लाइसेंस दे रही है। उन्हें खुले में कत्लेआम करने के लाइसेंस दिए जा रहे हैं। अगर गाय और भैंस की खरीद फिरोद नहीं होगी तो यह स्लॉटर हाउस कैसे चलेंगे? यहां पर गाय कैसे पहुंचेगी? यहां पर मांस का निर्यात कैसे होगा? यहां पर या तो उन स्लॉटर हाउस के मालिकों के साथ धोखाधड़ी करी जा रही है या फिर हिंदुस्तान के 90 करोड़ हिंदुओं की आस्था के साथ विश्वासघात किया जा रहा है। सरकार को सबसे पहले यह स्पष्ट करना चाहिए कि गाय को लेकर उनकी नीति क्या है? इन्हें स्लॉटर हाउस के लाइसेंस रद्द करने चाहिए, इन्हें अवैध, असंवैधानिक घोषित करना चाहिए। इसके बाद गाय  की खरीद फिरोद पर रोक लगानी चाहिए। सरकार को अपनी दोहरी नीति में बदलाव करना चाहिए। सरकार जहां उत्तर भारत में अपना गाय को लेकर एक अलग नजरिया रखती है, वहीं असम, मेघालय, मणिपुर में एक अलग नजरिया है। वहां पर सरकार कभी गाय को लेकर कुछ खास कदम नहीं उठाती है। वहां वह कभी गाय के मांस को लेकर विरोध नहीं करती है। आखिर वह ऐसा क्यों करती है? इस बात से कोई अंजान नहीं है। वह ऐसा इसलिए करती है क्योंकि वह अच्छे से जानती है कि वहां के ज्यादातर लोग बीफ खाने वाले हैं। क्या हिंदुओं की आस्था देश काल के हिसाब से बदल जाती है? असम के हिंदुओं और उत्तर प्रदेश के हिंदुओं के बीच के अंतर को लेकर उनकी क्या नीति है? सरकार को यह निर्धारित करना चाहिए। अब अक्सर गाय पर बढ़ते अत्याचार को देखते हुए सरकार को ऐसी नीति का निर्माण करना चाहिए जिससे की गाय को ऐसी राजनीतिक क्रियाओं का सामना ना करना पड़े।

अाखिर देश में कब तक गाय को लेकर बवाल होता रहेगा? कब तक मासूम गायों  की जान जाती रहेगी? कब तक गाय को बचाने में लोगों की जान जाती रहेगी? आखिर यह अंधेरगर्दी कब तक चलती रहेगी? सरकार को इस को लेकर नई कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए जो भी कारगर हो वो करना ही चाहिए। ताकि देश की एकता, अखंडता और सांप्रदायिक सौहार्द बना रहे। 


हमेशा गाय को लेकर कोई ना कोई घटना सामने आती रहती है। वहीं तथाकथित गौरक्षक गौरक्षा के नाम पर बेगुनाह किसानों को या आम इंसान को हमेशा परेशान करते रहते हैं। ऐसी खबरें हमेशा आती रहती है अगर सरकार को वाकई में इतनी फिक्र है तो इससे जुड़ी घटनाओं के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक कानून बनाना चाहिए। अभी कुछ समय पहले गुरूग्राम से एक मुस्लिम के साथ गौरक्षकों द्वारा की गई बर्बरता की घटना सामने आई थी। जिसमें उन रक्षकों ने उसे मार मार कर मौत के घाट उतार दिया था।

भारत में 29 में से 10 राज्य ऐसे हैं जहां गाय, बछड़ा, बैल, सांड और भैंस को काटने और उनका गोश्त खाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। बाकी 18 राज्यों में गौ हत्या पर पूरी आंशिक रोक है। भारत की पूरी आबादी में लगभग 90% हिंदू हैं और यह मान्यता है कि हिंदू गाय को पूजते हैं लेकिन वहीं एक सच यह भी है कि दुनिया भर में बीफ का सबसे ज्यादा निर्यात करने वाले देशों में से भारत भी एक है। जिन राज्यों में गाय को काटने पर पूर्ण प्रतिबंध है वहां गौ हत्या कानून के उल्लंघन करने पर कड़ी सजा व भारी जुर्माने का प्रावधान है। वहीं गुजरात में इसको लेकर सख्त कानून बनाए गए हैं जिसके तहत गौ हत्या करने पर लोगों को उम्र कैद की सजा व गाय की तस्करी करने वालों को 10 साल की सजा का प्रावधान है।

अब समय हो चुका है कि गौ रक्षा की बातों को केवल बातों तक ही ना छोड़ा जाए। बल्कि इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर कानून की स्थापना करना आवश्यक हो चुका है। गौ रक्षा को लेकर पूरे देश में एक समान कानून का निर्माण करना चाहिए, ताकि आए दिन देश को शर्मिंदगी का सामना ना करना पड़े। जहां पूरी दुनिया जानती है कि हिंदुस्तान के लिए गाय उसकी माता है। वहीं हिंदुस्तान में गाय के साथ जो व्यवहार किया जा रहा है निश्चित ही वह दुर्भाग्यपूर्ण है।

तंबाकू का सेवन जान पर भारी

           तंबाकू का सेवन जान पर भारी



 'वर्ल्ड नो टोबैको डे' मनाया जाना बहुत अच्छी बात है । एक दिन तो कम से कम इस बुराई से दूर रहने के लिए लोगों को प्रेरित किया जाता है। लेकिन इस सच्चाई से कोई अंजान नहीं की इस दिन भी लोग जोकि टोबैको  सेवन के आदी हैं वह उसका सेवन अवश्य करेंगे।

तंबाकू का सेवन करना सेहत के लिए हानिकारक है इस बात से कोई अनजान नहीं है। तंबाकू व किसी भी नशीले पदार्थ के पैकटों पर साफ साफ लिखा होता है कि इसका सेवन सेहत के लिए हानिकारक व जानलेवा है। यह जानते हुए भी, पढ़ते हुए भी लोग इसका सेवन करते हैं क्योंकि वह अपनी आदत से मजबूर हो जाते हैं। वह समझ ही नहीं पाते हैं कि कब इस  खतरनाक लत के आदी हो चुके होते हैं।  धूम्रपान, तंबाकू एक धीमा जहर है। जो लोगों को मौत के घाट उतार देता है। तंबाकू इंसान का वह दुश्मन होती है जो उसके अंदर तक जाकर उसे खत्म कर देती है। फिर भी लोग जाने-अनजाने इस बुरी आदत को अपना लेते हैं। वह  इसका सेवन आनंद लेने के लिए शुरू करते हैं और आनंद कब आदत में परिवर्तित हो जाता है यह उनको भी नहीं पता चलता है ।  फिर धीमे-धीमे उन्हें इस जहर की लत लग जाती है। 

तंबाकू का सेवन करने के मुख्य कारण ः


कहते हैं कोई बच्चा मां के पेट से सीख के नहीं आता है। यह बात सही है वैसे ही अगर लोग यह कहते हैं कि यह हमारी आदत है तो वह गलत है क्योंकि आदत वह मानी जा सकती है जो हमें बचपन से लग जाती है। लेकिन लगभग लोग धूम्रपान व तंबाकू का सेवन युवावस्था में ही शुरू करते हैं। इसकी आदत लोगों को युवावस्था में  हीे लगती है। अधिकतर युवा दूसरों की देखा देखी, तो कभी दोस्तों की जबरदस्ती में इसका सेवन  शुरू करते हैं। वहीं कुछ लोग अपने आप को उम्र से बड़ा दिखाने के लिए, बड़े लोगों की संगत में जाने के लिए इस बुरी लत के आदी हो जाते हैं। इस आदत का कारण एक और भी है जब लोग अपने फिल्मी हीरो को फिल्मों में धूम्रपान करते, नशीले पदार्थों का सेवन करते देखते हैं, तो उनके जैसा बनने के लिए वह भी उनका अनुसरण करते हैं। वहीं  अक्सर यह भी देखा गया है की कॉलेज लाइफ में युवक व युवतियां तंबाकू, धूम्रपान, अल्कोहल के सेवन को स्टेटस सिंबल मानते हैं जिसके कारण वह इस आदत को अपना अपनी जिंदगी में शामिल कर लेते हैं। अब तो आलम यह है कि महिलाएं भी अपने आपको मॉडर्न दिखाने के लिए इस प्रकार के नशे का सेवन करने लगी है। साथ ही बढ़ते समय के साथ बच्चे भी इसकी आदत के आदी होते दिख रहे

पहले तो लोग सिर्फ एक शौक के लिए इस बुरी लत को अपनाते हैं। बाद में कब उनका यह शौक उनकी आदत और कब उनकी आदत उनकी लत में बदल जाती है, यह वह खुद भी नहीं जान पाते हैं। उन्हें भनक भी नहीं लग पाती कि कब यह उनकी जिंदगी का हिस्सा बन उन को अंदर ही अंदर खोखला करना शुरू कर देती है।  यह जानते हुए भी कि तंबाकू का सेवन उनकी सेहत के लिए कितना हानिकारक है, वह उनकी जान का खतरा बन सकता है लोग इसका सेवन करने से नहीं चूकते हैं।

तंबाकू के प्रकार ः


तंबाकू सेवन के कई रुप हैं जैसे कुछ लोग सिगरेट, बीड़ी, हुक्के या चिलम का सेवन करते हैं। वहीं कुछ लोग गुटखा, जर्दा, खैनी आदि के जरिए इस जहर को अपने अंदर तक जाने का रास्ता देते हैं। आनंद प्राप्ति के लिए शुरू की गई यह प्रक्रिया कब उनकी मजबूरी बन जाती है इस बात का अंदाजा वह खुद भी नहीं लगा सकते हैं। वह जब तक समझते हैं तब तक कई बीमारियों से ग्रस्त हो चुके होते हैं। इसके सेवन से वह सिर्फ अपना ही नहीं बल्कि अपने से जुड़े अन्य लोगों का जीवन भी बर्बाद करते हैं। 


तंबाकू का सेवन करने के दुष्परिणाम
 ः


तम्बाकू में सबसे भयानक तत्व निकोटीन होता है। इसके अलावा और भी ऐसे बहुत से तत्व पाए जाते हैं जिनसे कैंसर जैसी बीमारियां उत्पन्न होती है। तंबाकू में हजारों किस्म के जहर होते हैं, जो कि इंसान को हर पल मौत की खाई की ओर धकेलते हैं। तंबाकू खाने से मुंह, गला, श्वास नली फेंफड़ों में कैंसर होने की संभावना बनी रहती है। वहीं इसकी वजह से दिल की बीमारियां, उच्च रक्तचाप, एसिडिटी, अनिद्रा और भी कई अन्य भयानक बीमारियों का सामना करना पड़ता है।

तंबाकू से जुड़े हैरान करने वाले आंकड़े ः


तंबाकू के सेवन से सवा छह सेकेंड में एक मौत होती है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिदिन 5500 से अधिक युवा इस बुरी आदत को अपनाते हैं। साथ ही 3500 से अधिक लोग प्रतिदिन इसकी वजह से अपने जीवन से हाथ धो बैठते हैं। कैंसर पीड़ित रोगियों में 100 में से 40 को तंबाकू के कारण कैंसर होता है।  तंबाकू के सेवन करने वालों में प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है। प्रतिवर्ष इनमें 22 % लोग बढ़ रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अधिक तंबाकू उत्पाद के प्रयोग से युवाओं में मनोदैहिक रोग बढ़ रहे हैं। जबकि भारत में प्रति 3 लाख आबादी पर एक मनोचिकित्सक है और 16 लाख कैंसर रोगियों की तुलना में केवल 1% ही डॉक्टर उपलब्ध है। तंबाकू व धूम्रपान के सेवन की वजह से 90% फेफड़े के कैंसर, 30% अन्य प्रकार के कैंसर,  80% ब्रोंकाइटिस, इन्फिसिमा एवं 20 से 25% घातक ह्रदय रोगों का कारण धूम्रपान है।
     इनके आंकड़ों के अनुसार तंबाकू व नशीले पदार्थों के सेवन की वजह से विश्व में प्रतिवर्ष 40 लाख से अधिक लोग मौत का शिकार होते हैं। वहीं भारत में भी लगभग 8 लाख से ज्यादा लोगों की मौत तंबाकू खाने व धूम्रपान करने की वजह से होती है। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2030 तक धूम्रपान से मरने वालों की संख्या 83 लाख हो जाएगी। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार 5 से 10 सिगरेट पीने वाले व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ने की आशंका दोगुना ज्यादा बढ़ जाती है। सिगरेट का एक कश जिंदगी के 5 मिनट को कम कर देता है।

       अगर इन आंकड़ों पर ध्यान दिया जाए तो निश्चित ही यह विचलित करने वाले हैं। यह जानते हुए भी की यह आदत हमें किस दिशा की ओर ले जाएगी, लोग इसे अपनाने से नहीं चूकते हैं। बल्कि इन का सेवन करने  वाले लोगों में दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है। इसके लिए निश्चित ही सरकार को कुछ उचित कदम उठाने चाहिए ताकि तंबाकू खाने का नशा करने वालों की संख्या पर काबू पाया जा सके इसके लिए एक नियंत्रण रेखा स्थापित करना आवश्यक है। 

इसकी रोकथाम के लिए केवल सरकार के कार्य करने से कुछ नहीं होगा बल्कि इसके प्रति लोगों का जागरूक होना भी उतना ही आवश्यक है। जितना कि सरकार के लिए इसकी रोकथाम करना। जब तक लोग अपने आप में जागरुक नहीं होंगे यह नहीं समझेंगे कि यह आदत सिर्फ उनके लिए ही नहीं बल्कि उनके परिवार वालों के लिए भी घातक है तब तक  लोगों के लिए इससे छुटकारा पाना नामुमकिन है।  यह समझना बहुत जरूरी है कि परिवार की सुख समृद्धि बनी रहे इसके लिए इस आदत को ना उन्हें खुद ही कहना पड़ेगा।

क्रिकेट प्रेम शहीद प्रेम से ज्यादा बड़ा

क्रिकेट प्रेम शहीद प्रेम से ज्यादा बड़ा

कानपुर : शहीदों को श्रद्धांजलि देकर उनका सम्मान करने की बातें बोलने में अच्छी लगती है, लेकिन असल में असलियत से कुछ और ही होती है। रविवार को कानपुर के ग्रीनपार्क में कीड़ा भारती द्वारा आयोजित दौड़ में यह साफ-साफ देखने को मिला। इतनी बड़ी आबादी वाले शहर में से इस आयोजन में मात्र 2000 लोग मौजूद रहे। वहीं अगर ग्रीन पार्क में क्रिकेट का खेल होना होता है तो  लोग ब्लैक में टिकट खरीदने तक को मजबूर हो जाते हैं।

   क्रीड़ा भारती अक्सर ऐसी प्रतियोगिताओं का आयोजन करता रहता है। वहीं इस बार उन्होंने इस प्रतियोगिता के आयोजन को एक शहीद का सम्मान समारोह बना दिया। इस बार उन्होंने शहीद कैप्टन आयुष को श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य दौड़ का आयोजन किया। लेकिन वहीं मैदान में मौजूदा लोगों की संख्या इस बात को साफ साफ बयां कर रही थी कि लोगों के अंदर शहीदों को लेकर कितनी संवेदनशीलता है। जहां वहीं मैदान क्रिकेट के खेल के दौरान खचाखच भरा होता था वहीं इतने नेक काम के लिए स्टेडियम में मात्र 2000 लोग ही नजर आए। इससे यह साफ प्रतीत होता है कि आज देश में रियल हीरो का कितना सम्मान है।

   इस प्रतियोगिता का आयोजन रविवार के दिन हुआ था। रविवार के दिन लगभग लोग खाली होते हैं अगर लोग चाहते तो शहीद के सम्मान में कम से कम एक दिन तो निकाल ही सकते थे। इस प्रतियोगिता में मुख्य अतिथि के रुप में  शहीद कैप्टन आयुष के माता-पिता व उनकी बहन को आमंत्रित किया गया। उन्होंने हरी झंडी दिखाकर दौड़ शुरू कराई।

कुलभूषण मामले में सक्रिय भूमिका आवश्यक

कुलभूषण मामले में सक्रिय भूमिका आवश्यक


पाकिस्तान सैन्य अदालत के फैसले को पलटते हुए हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने  भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव की फांसी पर अंतरिम रोक लगा दी है। इस फैसले के खिलाफ पाकिस्तान ने दोबारा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में अपील की है। अब यह देखने का विषय है कि इन का फैसला क्या आता है? लेकिन यह सच है कि पाकिस्तान पूरी दुनिया के सामने बेनकाब हो चुका है। उसका सच पूरे विश्व के सामने आ चुका है। और शायद इसी बात से वह पूरी तरह बौखलाया हुआ है।

अब वहीं बौखलाए पाक से फैसला आने का इंतजार भी नहीं हुआ। पाक की सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को अविलंब फांसी दिए जाने की मांग की गई है। उनका कहना है कि अगर उन्हें जल्दी फांसी नहीं दी गई तो वह हालात का फायदा उठाकर सजा से बच जाएंगे। पाकिस्तानी पीपुल्स पार्टी के नेता और राष्ट्रीय संसद के पूर्व अध्यक्ष का फारूक नाइक की ओर से याचिका अधिवक्ता मुजम्मिल अली ने दायर की है।याचिका में कहा गया है सैन्य अदालत से जुड़े नियमों के मुताबिक सजा के खिलाफ 40 दिन तक अपील की जा सकती है उसके, बाद सजा को क्रियांवित करने का प्रावधान है।

इससे यह बात साफ पता चलती है कि पाकिस्तान  जाधव को फांसी देने के लिए किस कदर उतावला है। उसको कोई फर्क नहीं पड़ता कि अन्य देशों में उसकी  इन करतूतों की वजह से क्या छवि बनेगी। यहां तक कि पाक ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को भी मानने से इनकार कर दिया। इससे साफ साफ दिख रहा है कि पाकिस्तान को अपनी छवि बिगड़ती छवि से कोई फर्क नहीं पड़ता वह बस अपनी मनमानी करने पर उतारू है। वहीं अब उसकी बढ़ती करतूतों को देखते हुए यह आवश्यक है कि जाधव मामले में सक्रियता बरतने की आवश्यकता है।

पिछले वर्ष 3 मार्च 2016 को पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को बलूचिस्तान से गिरफ्तार किया है। जबकि कुलभूषण जाधव को ईरान से गिरफ्तार किया गया था। भारत का दावा था कि ईरान के एक स्थानीय आतंकी संगठन ने कुलभूषण जाधव का अपहरण किया और अपहरण के बाद पाकिस्तान से एक मोटी रकम वसूल करी। बाद में उन्होंने जाधव को पाकिस्तान आईएसआई को सौंप दिया।

जाधव की गिरफ्तारी के बाद भारतीय उच्चायोग  ने पाकिस्तान से दर्जनों बार जाधव से मिलने की इजाजत मांगी थी। साथ ही जाधव के परिवार को पाकिस्तान ने वीजा नहीं दिया और 16 बार इजाजत मांगने के बावजूद कुलभूषण से मिलने के लिए काउंसलर एक्सेस नहीं दी गई, जो कि सरासर अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है। लेकिन पाकिस्तान ने सभी अंतरराष्ट्रीय कानून को दरकिनार करते हुए उन्हें मिलने की इजाजत नहीं दी। अचानक 10 अप्रैल 2017 को खबर आई कि पाकिस्तान की सेना अदालत ने यादव को फांसी की सजा सुना दी है। हालांकि फांसी की खबर आने के बाद भारत ने इस मसले पर कड़ा रुख अपनाया था। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में कहा था कि जाधव की सुरक्षा के लिए भारत किसी भी हद तक जाएगा।

पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव पर बलूचिस्तान में हिंसा  आतंकवाद और जासूसी बढ़ाने के आरोप लगाए। उसके लिए उन्होंने सैन्य अदालत के जरिए उन्हें फांसी की सजा सुना दी। जिसके विरोध में विदेश मंत्रालय, भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में फांसी पर रोक लगाने के लिए अपील दायर की। जिस पर कि आखिरकार अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने अंतरिम रोक लगा दी है।
अंतरराष्ट्रीय अदालत में भारतीय सरकार की ओर से पक्ष रखने वाले प्रसिद्ध वकील हरीश साल्वे ने  इस केस के लिए मात्र एक रुपए फीस के तौर पर लिए। साथ ही बहुत ही दमदारी से अपना पक्ष रखा और पाकिस्तान की सारी दलीलों को बेफिजूल साबित करते हुए उसे सबक सिखाया।

पाकिस्तान का व्यवहार भारत के लिए हमेशा शत्रुतापूर्ण रहा है | उसने जाधव के साथ जो कुछ किया उसमें कोई आश्चर्य नहीं है। पाक ने जाधव पर मनगढ़ंत आरोप लगाकर कर एकतरफा कार्रवाई की जो उस के बयानों से स्पष्ट भी हो रहा है | पाक ने कहा है कि जाधव गिरफ्तारी के समय 3 मार्च 2016 को भारतीय नौसेना में कमांडर थे और मजिस्ट्रेट के सामने उन्होंने रॉ के एजेंट होने की बात को भी स्वीकारा है। पाक का कहना था कि जाधव ने अपना नाम बदलकर हुसैन मुबारक पटेल कर लिया था, जबकि सच यह है कि उन्होंने नौसेना से तय समय से पूर्व सेवानिवृत्ति ले ली थी और अब वह व्यवसाय करते थे।

अभी हाल ही में पाकिस्तान के एक हाई कोर्ट ने  बताया कि सारे भारतीय जो जेल में बंद है वह राॅ के एजेंट नहीं है उन सभी कैद भारतीयों को छोड़ा जाए और वापस उनके देश में भेजा जाए। ऐसे में पाकिस्तान आर्मी और पाकिस्तान की सरकार के क्रियाकलाप पर सवाल उठना लाज़मी। वहीं जब कुलभूषण जाधव को गिरफ्तार किया गया तो उनके पास से उनका असली पासपोर्ट बरामद किया गया था, जो कि पाकिस्तान ने जुठला दिया। उसने दावा किया कि जाधव के  पास से जारी पासपोर्ट बरामद किए गए हैं।

वहीं सरताज अजीज ने 7 सितंबर को एक बयान दिया था, उनके  बयान पर ध्यान दे तो उन्होंने स्वयं कबूल किया था कि जाधव के खिलाफ कोई सबूत नहीं है उसके खिलाफ सिर्फ कुछ बयान ही हैं | सरताज अजीज ने यह बात पाक सीनेट में कही थी|  ऐसी कई बातों से साफ प्रतीत होता है कि जाधव को केवल भारतीय होने की सजा मिल रही है | साथ ही इससे साफ – साफ कि पाक सिर्फ अपनी शत्रुता का परिचय दे रहा है।

असल में कुलभूषण जाधव को जासूस करार दे कर फांसी की सजा सुनाने के पीछे एक वजह और भी मानी जा रही है। पिछले दिनों नेपाल के लुंबिनी से पाकिस्तानी सेना का एक पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल के गायब होने की बात सामने आई थी।  6 अप्रैल से पाकिस्तानी सेना का एक पूर्व अधिकारी भारतीय सीमा से सटे नेपाल के लुंबिनी इलाके से गायब हो गया था। सूत्रों के मुताबिक पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल मोहम्मह हबीब जहीर लुंबिनी में एक नौकरी के इंटरव्यू के लिए गया हुआ था। लेकिन उसके बाद उसका कुछ पता नहीं चला कि वह कहां गायब हो गया। काठमांडू स्थित पाकिस्तानी एंबेसी ने नेपाल सरकार से मोहम्मद हबीब को ढूढ़ने की अपील की थी। इसलिए उनके घर वालों ने आरोप लगाया किमोहम्मद हबीब को भारतीय गुप्तचर एजेंसियों ने उठाया है। उन्होंने शक जताया कि भारतीय एजेंसियों को शक था कि मोहम्मद हबीब भारत विरोधी गतिविधियों के संचालन करने के इरादे से लुंबिनी पहुंचा था जिसकी कि भारतीय एजेंसियों को भनक लग गई थी और उसके बाद से ही हबीब लापता है।

कुलभूषण जाधव का कई वर्षों से ईरान और भारत के बीच व्यापार  चल रहा था। इसीलिए व्यापार के सिलसिले में वह अक्सर ईरान जाया करते थे। वहीं ईरान का एक स्थानीय नागरिक उनका सहयोगी कारोबारी भी था और अक्सर वह कारोबार के सिलसिले में अफगानिस्तान और ईरान जाया करता था। उसी दौरान उन्हें  अगवा कर लिया गया था उसके बाद पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव पर भारतीय  जासूस होने का आरोप लगाया। यह सब पाक ने विश्व में दिन प्रतिदिन उसकी खराब हो रही छवि से बचने के लिए किया। इसके लिए उसने कुलभूषण जाधव को मोहरा बनाया। क्योंकि  जनवरी  में पठानकोट एयरबेस में जो हमला  हुआ था उसके बाद पाकिस्तान चारों तरफ बेनकाब हो रहा था। उससे बचने के लिए पाकिस्तान ने कुलभूषण को अपना मोहरा बनाया और पाक ने पूरे विश्व में यह दिखाने की कोशिश की कि भारत बलूचिस्तान को अशांत करने के लिए कुलभूषण जाधव जैसे एजेंटों को पाकिस्तान में सक्रिय कर रहा है। जिससे कि पाकिस्तान की अखंडता एकता बरकरार ना रहे। कुल मिलाकर पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव को अपना मोहरा,  वैश्विक तौर पर अपनी खराब हो रही छवि से उभरने के लिए बनाया।

    यह कोई पहला मौका नहीं है जब पाक ने निर्दोष भारतीय नागरिकों के प्रति ऐसा किया है। इससे पहले भी पाक कृपाल सिंह ,सरबजीत सिंह ,चमेल सिंह को मौत के घाट उतार चुका है| लेकिन भारत का पाक प्रति रवैया नहीं बदला जिसका नतीजा यह हुआ कि आज कुलभूषण को उसका खामियाजा भुगतना पड़ा | यदि उस समय की सरकारें सरबजीत सिंह ,चमेल सिंह, कृपाल सिंह के मामले पर आक्रामक रुख अपनाती तो शायद आज कुलभूषण को यह दिन  नहीं देखना पड़ता।

पिछले कुछ समय में ये माना जा रहा था कि भारत और पाक के रिश्ते सुधर रहे हैं। उनके दरमियां नए रिश्तों का आगाज हो रहा है लेकिन वहीं पाकिस्तान ने उरी हमला कर यह साबित कर दिया कि वह ना कभी सुधरा था और ना ही कभी सुधरेगा। इस हमले के बाद में पाकिस्तान दुनिया में चारों ओर बेनकाब हो रहा था, उसकी सच्चाई हर कोई जान चुका था। तो वहीं उस छवि से बाहर निकलने के लिए, अपने आप को बेचारा दिखाने के लिए पाक ने कुलभूषण जाधव के खिलाफ साजिश रच उन्हें अपना मेहरा बनाया। हालांकि भारतीय सरकार ने भरपूर कोशिश की कि जाधव के साथ नाइंसाफी ना होने पाए।वहीं अब जबकि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने कुलभूषण मामले में उनकी फांसी पर अंतरिम रोक लगा कर राहत दी है। सरकार को और भी सक्रिय भूमिका का प्रदर्शन करना चाहिए ताकि वह जल्द से जल्द जाधव को वापस अपने वतन ला सके। साथ ही पाकिस्तान के सामने ऐसा उदाहरण पेश करें कि आगे वह ऐसी कोई भी साजिश रचने से पहले सौ बार सोचे।



पारदर्शिता अधूरे सुधारों से नहीं आएगी

पारदर्शिता अधूरे सुधारों से नहीं आएगी



सरकार ने पहली बार राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे को लेकर सावधानी बरतने हेतु कुछ ठोस कदम उठाए हैं। परंतु असल में यह कदम कितने सही साबित होते हैं, यह तो वक्त बताएगा। सरकार ने चुनावी चंदे की राशी की सीमा को 20000 रूपए से घटाकर 2000 रूपए तक कर दी है। पर क्या इससे राजनीतिक दलों के अज्ञात फंडिंग स्त्रोत का पता चल पाएगा ? ऐसा हो पाना तो शायद मुश्किल है। राजनीतिक दलों के लिए सीमा तो पहले भी बाधित थी। पर वह बंधन सिर्फ दिखावे के लिए होते हैं। असलियत कुछ और ही होती है जो पुर्णतः सामने नही आती है। सिर्फ सुधार करने से कुछ नही होगा उसके लिए सावधानी बरतने की भी जरूरत है।

  चुनावी चंदे की सीमा के अदल - बदल से कुछ होगा ऐसा कहना थोड़ा मुश्किल है। उसको लेकर पारदर्शिता के लिए सभी राजनीतिक दलों की पूरी फंडिंग को जांच के दायरे में लाने के लिए कड़े इंतजाम करने की जरूरत है। भारतीय रिजर्व बैंक के मार्फत चुनावी बांड जारी करने और उसको राजनीतिक फंडिंग का जरिया बनाने का प्रस्ताव भी रखा गया है। लेकिन क्या सिर्फ इससे, कोई धोखा नहीं होगा यह कहना थोड़ा मुश्किल है। ऐसे प्रस्तावों का दुरुपयोग होने पाए, इसको लेकर चुनाव आयोग को कड़ी नजर रखते हुए पुर्णतः ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि पहले भी सभी दल अज्ञात चंदे की आड़ में चंदा देने वाले के नाम का खुलासा नहीें करते थे। ठीक इसी तरह यह दल चुनावी बांड का भी दुरुपयोग कर सकते हैं।


  असल में केवल ठोस कदम उठा लेने से कुछ नहीं होता है। उनको वास्तविक रुप से पूरा करना भी उतना ही आवश्यक होता है। केवल राजनीतिक फंडिंग को लेकर अधूरे सुधारांे से उसमें पारदर्शिता नहीं लाई जा सकती। उसके लिए चुनाव आयोग को कड़े उपाय करने और निष्पक्ष नजर की भी उतनी ही जरूरत है।

उद्घोष में रंग बिखरे हुनर निखरे

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मैं स्मृति मिश्रा

स्मृति मिश्रा 
पत्रकारिता की छात्र
           


मैं पत्रकारिता के क्षेत्र में एक सम्माननीय छवि बनाना चाहती हूं। पत्रकारिता के इतने माध्यमों में मेरा रुझान प्रिंट मीडिया की ओर अधिक है, क्योंकि लिखना मेरा शौक है।  इस क्षेत्र में आने का मकसद एकमात्र यह है कि इससे मैं एक दिन वह मुकाम हासिल करूं जिसकी कल्पना मैंने भी नहीं की है। मेरे मां-पापा की दिली तम्मना है कि मैं अपने पैरों पर खडी हूं, मुझे किसी पर निर्भर न रहना पड़े। इस क्षेत्र के जरिये मैं उनकी सारी इच्छाओं को पूरा करना चाहती हूं।


पहले मुझे ज्यादा लिखने-पढ़ने का शौक नहीं था लेकिन इस दिशा की ओर बढ़ने के लिए जब से सोचा अपने आप पढ़ने-लिखने का शौक भी जाग उठा। पत्रकारिता में आना मेरा मकसद नहीं था लेकिन अब पत्रकारिता ने ही मुझे एक नया मकसद दिया है। इस राह पर बढ़ने और अपने पैरों पर खड़े होना अब जिंदगी की ख्वाहिश है। इस क्षेत्र में कुछ करने और आगे बढ़ने का सपना ही मेरे लिए प्रेरणा बना। साथ ही मम्मी पापा का साथ इस प्रेरणा को हौसला देता रहा। हालांकि इस क्षेत्र में आने के लिए प्रेरणा की जरूरत नहीं है बल्कि यह क्षेत्र अपने आप में खुद ही एक प्रेरणा है। 

सुना है लोगों का नाम ही उनकी पहचान होती है वैसे ही मेरा नाम ही मेरी पहचान है, लेकिन अपने नाम को पहचान देना , मेरे अंदर इस इच्छा ने उड़ान पत्रकारिता में आने के बाद ही भरी। अब बस एक ही तम्मना है जल्द से जल्द अपने मुकाम को हासिल कर अपने मां-पापा का सपना पूरा करें।

उत्तर प्रदेश में बिगड़ी कानून व्यवस्था

प्रदेश की कानून व्यवस्था फिर शर्मशार



उत्तर प्रदेश सरकार बेहतर कानून व्यवस्था प्रदान करने के दावे करती है। वहीं लाख दावों के बाद भी आए दिन हो रही घटनाएं इन दावों को झूठा साबित करती है। बुलंदशहर में हाईवे पर फिर से एक परिवार के साथ लूट की घटना सामने आई। जबकि अभी तक पिछले बुलंदशहर कांड से पुलिस के दामन पर लगे दाग साफ भी नहीं हो पाए थे कि बुलंदशहर में फिर दरिंदगी का मंजर देखने को मिला। देर रात 2:00 बजे के करीब हाईवे  पर से एक परिवार अपने परिजन को देखने के लिए अस्पताल जा रहा था तभी अचानक ऐक्सल गैंग के 6 बदमाशों ने लूट के इरादे से उन पर हमला कर दिया। हमला कर उन्होंने उस परिवार को बंधक बना लिया फिर वह उन्हें खेतों की ओर ले गए। वहां उन बदमाशों ने अपनी दरिंदगी का प्रदर्शन किया। पहले तो उन्होंने परिवार के पुरुषों के साथ मारपीट की उनको सरिये से मारा फिर  परिवार की महिलाओं के साथ दुष्कर्म जैसे घिनौने काम को अंजाम दिया। पीड़ित महिलाओं में से एक महिला ने अपनी उम्र का हवाला देते हुए उन बदमाशों से कहा कि मैं 50 साल की हूं तुम लोग मेरे बच्चे जैसे हो। लेकिन ऐसे हैवानों के लिए किसी प्रकार का कोई भी रिश्ता मायने नहीं रखता है। वहीं जब परिवार के एक पुरुष ने बदमाशों को महिलाओं के साथ बदसलूकी करने से रोकने की कोशिश की तो उन बदमाशों ने उसकी गोली मारकर हत्या कर दी।

प्रदेश में परिवार के साथ लूट के बाद महिलाओं के साथ बदसलूकी की यह कोई पहली घटना नहीं है। बुलंदशहर हाईवे पर या अक्सर सुनसान रास्तों पर बदमाश अपने नापाक इरादों में सफल होते रहे हैं। वह अपनी हरकतों से साफ दर्शाते हैं कि उन्हें किसी प्रकार का कोई भय नहीं है।

बदमाशों ने पहले भी ऐसी ही घटना को अंजाम दिया था। पिछले साल 29 जुलाई की रात बुलंदशहर के पास राजमार्ग पर बदमाशों ने एक परिवार के साथ लूट और फिर मां-बेटी के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। इस घटना ने पूरे देश को  झिंझोर कर रख दिया था। लगातार हो रही कोई ना कोई वारदात सामने आती रहती है और अक्सर हो रही ऐसी घटनाओं से लोगों में कानून व्यवस्था को लेकर विश्वास कम हो रहा है। आखिर जब हमेशा कोई ना कोई वारदात होती रहती है, तो रास्तों पर पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए जा रहे हैं? सुरक्षा के लिहाज से दावा किया जाता है कि रात में पेट्रोलिंग होती है, अगर पेट्रोलिंग होती तो बदमाश यूं ही ऐसी वारदातों को अंजाम देने में सफल ना होते।


आखिर उत्तर प्रदेश में यह कैसी कानून व्यवस्था है? जहां बदमाशों को किसी कानून का कोई डर नहीं है। जहां अक्सर वह कानून को ताक पर रखकर ऐसी घटनाओं को अंजाम देते पाए जाते हैं। इनसे निपटने के लिए प्रदेश सरकार को कड़ी नीतियों का प्रयोग करने की जरूरत है। नहीं तो जल्द ही ऐसे बदमाश प्रदेश के शासक बन जाएंगे। 

असल में तो इन घटनाओं की जिम्मेदार व्यवस्थापकों के द्वारा हो रही लापरवाहियां है। हर घटना के बाद समय से कार्वरवाई न होना बदमाशों के हौसले और बुलंद करता है। वह जानते हैं कि वह वारदात को अंजाम देकर आसानी से निकल सकते हैं। यह बात इस घटना के बाद साबित भी होती है। वारदात से पीड़ित परिवार का आरोप है कि उन्होंने 2:15 बजे के करीब पुलिस को फोन किया था  लेकिन घटना की सूचना पाने  के बाद भी पुलिस घटनास्थल पर 3:30 बजे पहुंची। उस डेढ घंटे तक वह दरिंदे अपनी दरिंदगी का प्रदर्शन करते रहे। जबकि पुलिस चौकी घटनास्थल से मात्र 20 मिनट की दूरी पर है। 

अभी हाल ही में एक निजी चैनल में साक्षात्कार के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह दावा किया था कि पहले कि सरकार के समय पुलिस लोगों की सुनवाई नहीं करती थी समय पर घटनास्थल पर नहीं पहुंचती थी। लेकिन अब उनके कार्यकाल में पुलिस के रवैये में बदलाव आया है। अगर यह सच है तो इस घटना के समय पुलिस कहां थी? क्यों नहीं वह समय से पहुंची? शायद पुलिस अगर समय से पहुंच जाती तो इतनी बड़ी वारदात को होने से रोका जा सकता था। दिन - प्रतिदिन उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था बद से बद्तर होती दिख रही है।

उत्तर प्रदेश में लगातार बदमाशों के हौसले बुलंद होते दिख रहे हैं। अब यह बदमाश दिनदहाड़े सरेराह वारदातों को अंजाम देते हैं। ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हुए वह जरा सा भी नहीं हिचकते हैं। वह सारी कानून व्यवस्था को ताक पर रखकर अपनी हैवानियत का लगातार प्रदर्शन करते रहते हैं। यह प्रदेश में घटित कोई पहली घटना नहीं है इससे पहले भी कई घटनाएं सामने आई है।

14 जून को आगरा - फिरोजाबाद के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग पर बोलेरो सवार बदमाशों ने एक लूट की वारदात को अंजाम दिया था। उन्होंने फ़िरोज़ाबाद के एक व्यापारी की कार रुकवाकर 46 लाख 10 हजार रुपए कि लूट की।  वहीं मथुरा में बदमाशों ने एक सर्राफा व्यापारी के साथ लूट के बाद उसकी हत्या कर दी। जिसके विरोध में जिले के व्यापारियों ने विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने अपने प्रतिष्ठानों को बंद कर अपना विरोध जाहिर किया। इस घटना के बाद व्यापारियों ने मथुरा में हुई घटना की निंदा की और मृतक व्यापारी के परिवार के लिए मौन व्रत रखा। बडौत के व्यापारी ने बताया कि उन हालातों में व्यापार करना कठिन हो गया था। साथ ही  योगी सरकार से कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने की गुहार भी लगाई थी। 


प्रदेश में बिगड़ी कानून व्यवस्था के उदाहरण कम नहीं है। अभी हालही में  सहारनपुर में भड़की हिंसा से पूरे प्रदेश का माहौल बिगड़ गया था। इस बात की शुरुआत 5 मई को भी हुई थी। सहारनपुर से 25 किलोमीटर दूर शिमलाना गांव में महाराणा प्रताप जयंती का आयोजन हुआ था। जिसमें शामिल होने के लिए शब्बीरपुर गांव से कुछ लोग शोभा यात्रा निकाल रहे थे। उस दौरान कुछ विवाद हुआ। विवाद इतना बढ़ा कि दोनों तरफ से हमला होने लगा। जिसमें उच्च जाति के एक युवा की मृत्यु हो गई। इसके बाद हिंसा इतनी बढ़ गई कि उच्च जाति के लोगों ने दलितों के घरों में तोड़फोड़ और आगजनी कर दी। इस घटना से गुस्साए दलितों के संगठन भीम आर्मी ने एक विरोध प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन के बाद भड़की हिंसा में एक पुलिस चौकी फूंक दी गई और वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया। अगर समय से इस बढ़ती हिंसा पर काबू पाने की कोशिश की जाती तो शायद माहौल इतना ना बिगड़ता। लेकिन व्यवस्था सुधारने की वजह राजनीतिक पार्टियां आरोप प्रत्यारोप लगाने में लगी रहती हैं।

अक्सर शहर को ऐसी वारदातों की वजह से शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। इंसानियत शर्मशार होती है और हैवानियत अपने चरम पर होती है। इन घटनाओं से साफ - साफ प्रतीत होता है कि प्रदेश का माहौल कितना अच्छा है।

आजादी के पहले हम आजाद नहीं थे यह तो समझ आता था। लेकिन अब जब कहा जाता है कि हम आजाद हैं तब लोग इन घिनौनी वारदातों की वजह से  घर के अंदर रहने को मजबूर हैं, वह मजबूर है कि रात में बाहर ना निकले, सुनसान रास्तों पर सफर ना करें, किसी बदमाश का विरोध ना करें नहीं तो वह उनके साथ मारपीट कर सकता है या उनकी हत्या कर सकता है। 

इस से बेहतर तो वह समय था जब हम आजाद नहीं थे। कम से कम एक तसल्ली होती थी कि हम गुलाम हैं इसलिए हमारे साथ ऐसा हो रहा है।लेकिन अब हम आजाद होकर भी आजाद नहीं रह सकते। इस माहौल से उभरने के लिए जरूरी है कि प्रदेश सरकार कुछ ठोस कदम उठाए और लोगों को सुरक्षित माहौल मुहैया कराए।


कहते हैं इंसान सबसे ज्यादा सुरक्षित अपने देश में महसूस करता है। लेकिन ऐसी वारदातों के कारण सबके अंदर एक डर की भावना उत्पन्न होती जा रही है। पहले तो सिर्फ लड़कियां और बच्चे अकेले निकलने में डरते थे, लेकिन अब तो लोग अपने परिवार के साथ भी रास्तों पर सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं। प्रदेश को एक सुरक्षित माहौल देने के लिए सरकार को कानून व्यवस्था पर काम करने की जरूरत है। ताकि लोगों को यह भरोसा हो सके कि वह सुरक्षित हैं। 








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जन्म होते ही बनते रिश्ते जिंदगी के अनमोल रिश्ते पालने में झुलता बचपन नए रिश्ते संजोता बचपन औलाद बनकर जन्म लिया संग कई रिश्तों को जन्म द...