अनकही बातें, अनदेखे पल
बचपन से
ही हम सुनते आए हैं कि समय किसी के लिए नहीं रुकता है। वह निरंतर चलता रहता है। एेसे ही सन् 2017 भी अच्छी बुरी बातों को अलविदा कहते हुए धीरे-धीरे नए साल के नए सवेरे की ओर बढ़ता जा रहा है। समय के साथ-साथ हमारी
जिंदगी भी चलती ही रहती है। वह भी किसी के लिए नहीं रुकती। इस बात को एक गायक ने इस गाने में बहूत ही खूबसूरती के साथ इस तरह बयां किया है
''आने वाला
पल जाने वाला है
हो सके तो इसमें, जिंदगी बिता दो
पल जो ये जाने वाला है ''
हो सके तो इसमें, जिंदगी बिता दो
पल जो ये जाने वाला है ''
अब साल 2017 के अच्छे,
बुरे सभी पल जाने वाले हैं, वह भी बस यादों का हिस्सा बनकर रह जाएंगे । ऐसे में हमें भी बीते साल की बुरी बातों को पीछे छोड़ आगे बढ़ जाना चाहिए।
हम सभी को यह
सोचना चाहिए कि बीते साल में कौन सी बातें हमारे जीवन को एक नई दिशा दे सकती थी और यह समझना चाहिए कि उसी के सहारे हमें आने वाले जीवन में एक मुकाम पर पहुंचना है।
यह तय करना किसी और के नहीं बल्कि स्वयं आपके अपने हाथ में है।
दुनिया
में हर किसी ने पिछला साल शुरू होने से पहले ही सोचा होगा कि उन्हें 2017 से क्या
उम्मींदे हैं। मैंने भी 2017
से बहुत उम्मीदें लगाई थी उनमें से कुछ उम्मीदें मेरी पूरी हुई
और कुछ अभी भी बाकी हैं। अब मुझे विश्वास है कि मैं आने वाले सालों में इन्हें अवश्य पूरी कर लूंगी। यह विश्वास हर किसी को अपने आप पर बनाए रखना चाहिए, ताकि वह बीते साल से निराश ना रहे।
2016 में
मैंने अपने जीवन को एक नई दिशा देने के उद्देश्य से जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ़
मैनेजमेंट एंड मास कम्युनिकेशन जॉइन किया था। अगस्त में नए सफर की शुरूआत हुई और
देखते ही देखते 2017 आ गया।
जब मैंने एडमिशन लिया तब मुझे सिर्फ इतना पता था कि पत्रकारिता का कोर्स कर के मैं
किसी भी अखबार या टीवी न्यूज चैनल में
काम कर सकती हूं। लेकिन समय बीतता गया और मुझे मेरे अंदर की विशेषताओं और खामियों
के बारे में समझ आती गई। जब
मैंने यह कोर्स ज्वाइन किया था तब लिखने-पढ़ने का शौक नहीं था। लेकिन
इस दिशा की ओर बढ़ने के लिए जब से सोचा अपने आप पढ़ने-लिखने का शौक भी जाग उठा। हालांकि इस साल ने मुझे अपने कॅरियर का चुनाव करने में बहुत मदद की।
पत्रकारिता में आना मेरा मकसद नहीं था लेकिन अब पत्रकारिता ने ही मुझे एक नया मकसद
दिया है। इस राह पर बढ़ने और अपने पैरों पर खड़े होना अब जिंदगी की ख्वाहिश है। साथ ही इस
क्षेत्र में कुछ करने और आगे बढ़ने का सपना ही मेरे लिए प्रेरणा बना। वहीं मम्मी
पापा का साथ और टीचर्स का मोटिवेट करना, हमेशा ही
मेरे लेखन की सराहना करना
इस प्रेरणा को हौसला देता रहा। हालांकि इस क्षेत्र में आने के लिए
प्रेरणा की जरूरत नहीं है क्योंकि यह अपने आप में खुद एक प्रेरणा है।
पिछले साल इस कॉलेज ने मेरे जीवन को जहां एक नई दिशा दी वहीं कुछ ऐसे दोस्त भी
मिले जिन्होंने मुझे यह महसूस कराया कि “आई एम
आल्सो स्पेशल”। और जो कि शायद इसके पहले मैंने कभी महसूस नहीं किया था। यह
लोग कब मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए ये शायद मुझे भी नहीं पता चला। एक
ऐसा हिस्सा जो कि मैं शायद अगर कभी भूलना भी चाहूं तो भूल नहीं सकती हूं। इस साल
ने मुझे कुछ मीठे तो कुछ खट्टे अनुभव भी दिए। जहां टीचर्स का साथ, उनका मोटिवेट करना, अक्सर ग्रुप में
होती नोक झोंक, एक दूसरे को समझना और समझाना, रूठने पर एक दूसरे को मनाना, क्लास
की मस्ती सबको किसी का नाम लेकर चिढ़ाना और भी ऐसी बहुत सी बातें मीठी यादों का
हिस्सा बनी तो वहीं यह भी सीखने को मिला कि जीवन ही नहीं पत्रकारिता में भी किसी पर भी आंख बंद करके भरोसा करना एक
गलती साबित हो सकती है। इस साल से मुझे हर प्रकार का अनुभव मिला। मैंने अपनी गलतियों को समझा और कोशिश की कि उनसे कुछ सीख भी सकूं। मेरी जिंदगी का बस एक ही मकसद है कि मैं बिना किसी का सहारा लिए अपनी मर्जी के मुताबिक अपनी जिंदगी जी सकूं। बचपन से ही सुना था कि लड़कियों के दो घर होते हैं। एक उनके पिता का और दूसरा उनके पति का। वहीं मेरा सपना है कि मेरा अपना एक घर हो जिसे कि मैं अपना कह सकूं। इस सपने को पूरा करने के लिए यह आवश्यक है कि मैं सेल्फ डिपेंडेंट बनूं।
पिछले साल ने मुझे बहुत कॉन्फिडेंस दिया। अपने कॅरियर में क्या करना है यह चुनाव करने में मदद की। अब मैं पत्रकारिता के क्षेत्र में एक सम्माननीय छवि बनाना चाहती हूं। पत्रकारिता के इतने माध्यमों में मेरा रुझान प्रिंट मीडिया की ओर अधिक है क्योंकि लिखना मेरा शौक है। मेरा मकसद एकमात्र यह है कि मैं एक दिन वह मुकाम हासिल करूं जिसकी कल्पना मैंने भी नहीं की है। मेरे मां पापा की दिली तमन्ना है कि मैं अपने पैरों पर खड़ी होऊं। मुझे किसी पर निर्भर ना रहना पड़े। इस साल इस कॉलेज में रहने के बाद मुझे इस बात का अंदाजा हो गया कि इस क्षेत्र के जरिए मैं अपनी सारी इच्छाओं को पूरा कर सकती हूं। बस मेहनत हमें खुद करनी है, क्योंकि बिना कुछ किए तो मिल नहीं जाता और बचपन से ही सुना भी है कि
''परिश्रम ही सफलता की कुंजी है''
सुना है
लोगों का नाम ही उनकी पहचान होती है।वैसे ही मेरा नाम ही मेरी पहचान है, लेकिन अपने नाम को पहचान
देना थी। मेरी इस इच्छा ने उड़ान पिछले साल पत्रकारिता के क्षेत्र में आने के बाद ही भरी। इसीलिए पिछला साल मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। अब बस एक ही तम्मना है
जल्द से जल्द अपने मुकाम को हासिल कर अपने मां-पापा का सपना पूरा करूं।