कोई पत्थर से ना मारे इन जवानों काे

        कोई पत्थर से ना मारे इन जवानों काे


                        दुश्मन फेंके अगर बम भी तो,
                                 गम नहीं होता है, 
                 अपनो के पत्थर फेंकने से बड़ा कोई, 
                               सितम नहीं होता है।

शायद आज हमारे देश के जवान की यही मनोस्थिति है। हाल ही में कश्मीर से वायरल हुआ वीडियो जिसमें कुछ गुमराह कश्मीरी युवक सीआरपीएफ जवानों पर पत्थरबाजी कर रहे हैं । निश्चित ही यह वीडियो विचलित करने वाला है। क्योंकि आज हम अपने घरों में जिनकी बदौलत सुरक्षित बैठे हैं, वह हमारी रक्षा करते हुए अपने ही देश में किन परेशानियों का सामना कर रहे हैं  यह देखकर आश्चर्य होता है।  जो  जवान अपने देश के प्रति जिम्मेदारी निभाने हेतु अपने परिवार से दूर रहते हैं,उन्हें अगर प्यार नहीं मिल सकता तो कम से कम ऐसा अपमान भी ना मिले। निश्चित ही ऐसे में अपने परिवार से दूर रह रहे जवानों का मनोबल घटता है।

यह कोई पहली बार नहीं है जब जवानों के साथ कश्मीर में हो रही बदसलूकी सामने आई है। इससे पहले भी उनके साथ हो रहे दुर्व्यवहार के वीडियो देखने को मिले हैं। देश की सुरक्षा में लगे जवानों को क्या कीमत चुकानी पड़ती है यह देखकर पीड़ा होती है  साथ ही फारूक अब्दुल्ला  के बयान  पर आश्चर्य भी होता है।

नेशनल कांफ्रेंस प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ फारूक  अब्दुल्ला एक तरफ तो उनके साथ हुए दुर्व्यवहार को दुर्भाग्यपूर्ण बता रहे व उनकी सहनशीलता की सराहना कर रहे हैं, वहीं  उनका कहना  है कि ''पत्थरबाजों को एक नजर से देखना सही नहीं है उनकी कुछ शिकायतें हैं जिसके कारण वह घर से बाहर निकल जाते हैं ''।

अगर ऐसे पत्थरबाजों की शिकायतों को समझने में लगे रहे तो हमारे जवान किसके पास शिकायत लेकर जाएंगे? क्या उन्हें शिकायत करने का हक नहीं? इसका जवाब तो फारूक अब्दुल्ला ही दे पाएंगे। अपने ही देश के नेताओं द्वारा दिए गए ऐसे बयानों को सुनकर निश्चित ही सेना का मनोबल घटता है। ऐसे में इन कठिन परिस्थितियों में काम कर रही सेना से वह कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वह उनकी रक्षा करें। लेकिन सेना कभी अपने कर्तव्यों के आगे अपने मान सम्मान को नहीं आने देती है।

ऐसे में निश्चित ही राजनीतिक पार्टियों को फारूक अब्दुल्ला के बयान पर जवाब देना चाहिए।  लेकिन वह ऐसी परिस्थिति में चुप रहना ही सही समझते हैं। सेना को तो उनके कर्तव्य समझाए जाते हैं लेकिन उनके प्रति सरकार अपने कर्तव्य नहीं समझती हैं। अगर दूसरे देशों से तुलना करी जाए तो हमारे देश में सुरक्षा बलों के लिए कुछ खास नहीं किया गया है। जैसे इजराइल में सेना पर पत्थरबाजी करने वालों के लिए सजा का प्रावधान है। वहां यदि कोई पत्थर बाजी करता है तो उसके परिवार वालों को मिल रही नेशनल हेल्थ इंश्योरेंस सेवा व अन्य सुविधाएं रद्द कर दी जाती है। जिससे की सेना के साथ बदसलूकी करने के पहले लोग एक बार सोचते हैं परंतु हमारे देश में किसी को कोई डर नहीं है। यही कारण है कि अक्सर ऐसी स्थिति सामने आती रहती है।

जवानों के साथ अक्सर हो रहे ऐसे दुर्व्यवहार पर सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए। सरकार को इस 'एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी सिचुएशन' में 'एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी तरीके' अपनाने चाहिए। इससे इन गुमराह पत्थरबाजों पर लगाम लग सकेगी। जब इन्हें कानून का डर होगा तो वह ऐसे कदम उठाने के पहले सौ बार सोचेंगे। ऐसा ना होगा तो आगे भी देश को ऐसे हालातों के कारण शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी। 

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